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*एएनआई की कार्रवाई से खुला देश में इस्लामिक कट्टरपंथ फैलाने की साजिश की परतें,पीएफआई कर रहा था देश विरोधी ताकतों की आर्थिक सहायता,केन्द्र सरकार के प्रतिबंध से टूटी देश को अस्थिर करने वाली संगठनों की कमर……..पढ़िये,पीएफआई के खिलाफ शुरू से लेकर अब तक हुई कार्रवाई का पूरा* विवरण,ग्राउंड जीरो ई न्यूज की खास रिपोर्ट में……..*

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जशपुरनगर,ग्राउंडजीरो ई न्यूज,डेस्क।* आतंकवादी और देश में अशांति फैलाने वाले कट्टरपंथी संगठनों को आर्थिक सहायता पहुंचाने के आरोप में केन्द्र सरकार ने कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया को पांच साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया है। आतंक की इस फंडिंग का यह देश व्यापी षड़यंत्र 15 राज्यो में आर्थिक अन्वेषण ब्यूरा या ईडी और स्थानीय पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई से फूटा था। इस कार्रवाई के दौरान प्रतिबंधित संगठन पीएफआई के ढाई सौ से अधिक संदिग्ध कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया है। सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार,आतंकियों को आर्थिक सहायता पहुंचाने वाला यह संगठन भारत के दक्षिण के राज्यों में अधिक सक्रिय है। ईडी की इस कार्रवाई के बाद केरल और तमिलनाडु में कुछ हिंसात्मक घटनाएं भी हुई।पुणे पीएफआई के जिलाध्यक्ष कुइस अनवर एनआईए की इस कार्रवाई के गैर कानूनी होने का दावा किया है। हालांकि उनके पास एनआईए की कार्रवाई में बरामद हुए आपत्तिजनक दस्तावेज और हथियारों के संबंध में कोई जवाब नहीं था। सन 2012 और 2014 में केरल की सरकार ने हाई कोर्ट में एक एफिडेविट दायर करके ये कहा था कि पीएफआई गलत तरीकों से भारत में इस्लामीकरण को बढ़ावा देना और धार्मिक सौहार्दयता को बिगाड़ना चाहता है। केरल की सरकार ने एफिडेविट में ये भी कहात कि पीएफआई ने कभी भी भारत के एक आम मुस्लिम की सोच को लोगों के सामने लाने का काम नही किया। बल्कि धार्मिक कट्टरता को ही मुस्लिमों पर थोपा। एनआईए ने पीएफआई के खिलाफ 19 केस दर्ज किए हैं और इनके 45 बड़े कार्यकर्ताओं को पहले ही गिरफ्तार किया जा चुका है। 22 सितंबर और 27 सितंबर 2022 को पडी रेड में एनआईए ने पीएफआई के चीफ ओ एम ए सलम, प्रोफ़ेसर कोया, अब्दुल रहमान, अनीस अहमद, अब्दुल वाहिद सैत, मोहम्मद अली जिन्नाह और अब्दुल वारिस जैसे सभी नामी गिरामी पीएफआई कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया। आपको यह बताना चाहेंगे कि पीएफआई चीफ ओ एम ए सलाम केरल स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में कार्यरत था और एक सरकारी कर्मचारी होने के बावजूद भी पीएफआई जैसे धार्मिक कट्टरपंथी संगठन का संचालन कर रहा था। पीएफआई को भारत मे बैन हो चुकी सिमी संगठन का ही एक अंग माना जाता है। सिमी 1977 से लेकर 2007 तक भारत में एक्टिव रहा। 2007 में भारत सरकार के सिमी प्रतिबंध लगाने के बाद पीएफआई का उदय हुआ। पीएफआई का एक राजनीतिक संगठन भी है जिसे एसडीपीआई के नाम से जाना जाता है। पीएफआई के बहुत सारे वर्तमान कार्यकर्ता पूर्व में सिमी से जुड़े हुए थे। इसके अलावा अलकायदा के लिए अंसार जैसे पदों पर भी मौजूद थे। पीएफआई पर हुइ इस कार्रवाई का विरोध केवल पीएफआई के कार्यकर्ता ही कर रहे हैं। दिल्ली, वाराणसी,इंदौर और मुंबई के बड़े-बड़े मुस्लिम धर्म गुरुओं ने भी पीएफआई पर हुई इस कार्यवाही का समर्थन किया है और इस पर लगे बैन को सही ठहराया है। कई सारे मुस्लिम भाई बहनों का ये भी कहना है कि पीएफआई हमेशा से ही आम मुस्लिमों की छवि को पूरे भारत में खराब करता रहा है और इस पर बैन लगना जायज़ है। कईयों ने तो यह तक कह डाला कि 5 साल का प्रतिबंध बहुत कम है इन पर आजीवन प्रतिबंध लगना चाहिए क्योंकि पीएफआई इस्लाम की विचारधारा को नहीं दर्शाता है और भारत का कोई भी मुस्लिम किसी भी तरह से पीएफआई सेकोई भी संबंध नहीं रखना चाहता।

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