कोतबा/ जशपुर:- शुक्रवार को जिले भर में वट सावित्री पूजा पर विवाहित महिलाओं का उत्साह देखने को मिला.अखंड सौभाग्यवती बनने,पति के लंबी आयु सहित समृद्वि की कामना के लिये महिलाओं ने सोमवार सुबह वट सावित्री की पूजा किया।आचार्यों ने इस पूजा को पर्यावरण संरक्षण के लिये भी महत्वपूर्ण बताया और कई स्थानों पर पूजा के साथ पर्यावरण संरक्षण के लिए संकल्प दिलाया गया।उल्लेखनीय है कि वट सावित्री व्रत अखण्ड सौभाग्य की कामना के लिये महिलायें व्रत रखती है। और यह दिन उनके लिये खास होता है।
शुक्रवार सुबह क्षेत्र भर के व्रती महिलाएं बरगद पेड़ के नीचे पूजा अर्चना करते देखी गई।वट वृक्ष के पास एकत्रित होकर पूजा अर्चना के बाद बरगद के पेड़ पर परिक्रमा करते हुये व्रती महिलाओं ने पति के दीर्घायु होने की कामना की।इस दौरान पारंपरिक कथा भी सुनते महिलाओं को देखा गया।वट सावित्री व्रत सुहागिनों के लिये अन्य व्रत की अपेक्षा अत्यअधिक महत्वपूर्ण होता है।
नगर के वार्ड क्रमांक 9 सहित सतिघाट धाम,खालपारा,इंदिरा आवास,सहित अन्य जगहों पर देखा गया।लेकिन सबसे अधिक महिलाओं का समूह नगर के वार्ड के 9 में रहा।जहां सैकड़ो की संख्या में महिलाएं बारी बारी से टोली बनाकर बरगद पेड़ की परिक्रमा कर पूजा अर्चना किया गया। नगर के वार्ड क्रमांक 9 स्थित बरगद पेड़ के पास सुबह से महिलाएं आना शुरू कर दिया था।सभी व्रती नये वस्त्र पहनकर,सोलह श्रृंगार कर पूजा की सामग्री को एक टोकरी,डलिया दोना में सजाकर लाई और पूजा में शामिल हुई।इसके बाद सबसे पहले सत्यवान और सावित्री की मूर्ति को स्थापित किया गया इस दिन के पूजा में सामग्रियों का बिशेष महत्व होता है।पूजा में धूप, दीप, रोली,भिगोये चने,सिंदूर,बांस का पंखा,लाल या पिला धागा,धूपबत्ती,फूल,कोई भी पांच फल,जल से भरा पात्र, सिंदूर,लाल कपड़ा आदि से वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ का पूजन किया गया। इस व्रत को वरदगाई भी कहा जाता है।वट सावित्री व्रत में मुख्यरूप से सत्यवान और सावित्री की कथा कही गई।कथावाचक पंडित ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार इस दिन सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस ले आई थी।इसलिए इस व्रत को सती सावित्री कहा जाता हैं।
यह व्रत विवाहित स्त्रियों के लिये खास महत्व होता है।ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत को रखने से वैवाहिक जीवन मे आने वाले सभी कष्ठ दूर हो जाते है. और हमेशा सुख शांति बनी रहती है। कथा वाचन करा रहे पंडित के मुताबिक वट सावित्री व्रत में वट वृक्ष का पूजन पर्यावरण संरक्षण के दृश्टिकोण से विशेष महत्व है।उन्होंने बताया कि यह पूजा प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देकर जाता है। उन्होंने बताया कि सौभाग्यवती महिलायें अपने अखण्ड सौभाग्य के लिये आस्था और विश्वाश के साथ व्रती रहकर पूजा अर्चना करती है।वट वृक्ष प्राण वायु आक्सीजन प्रदान करने के प्रमुख और महत्वपूर्ण स्रोत है।वट वृक्ष को पृथ्वी का संरक्षक भी कहा जाता हैं वट वृक्ष प्रकृति से ताल मेल बिठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।वट सावित्री पूजा में नवविवाहिता महिलाओं में काफी उत्साह देखने को मिला।श्रीमती जयश्री बंजारा,संध्या बंजारा, सहित अन्य महिलाओं ने बताया कि यह दिन उत्सव भरा महत्वपूर्ण पर्व रहा।
उन्होंने बताया कि धार्मिक ग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार त्रेता युग में भगवान श्रीराम एवं द्वापर युग मे भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा पेड़ो की पूजा करने के उदाहरण मिलते हैं।वनस्पति विज्ञान के रिपोर्ट के अनुसार यदि बरगद के वृक्ष न हो तो ग्रीष्म ऋतु में जीवन काफी कठिनाइयों भरा होगा।वनस्पति विज्ञान एक रिसर्च के अनुसार सूर्य की ऊष्मा का 27 प्रतिशत हिस्सा बरगद के वृक्ष अवशेषित कर उसमें अपनी नमी मिलाकर उसे पुनः आकाश में लौटा देती है।जिससे बादल बनता है और वर्षा होती है,आचार्य ने बताया कि वट वृक्ष प्राणवायु आक्सीजन प्रदान करने के प्रमुख और महत्वपूर्ण स्रोत है।इसलिये प्रतीकात्मक रूप से ही सही इस पौधे को घर में एक नियत समय तक गमला में भी रखा जा सकता हैं।और पौधा बड़ा होने पर किसी खाली स्थान में इसे स्थापित कर संरक्षण करना चाहिये।