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*Breking jashpur:-पत्थलगढ़ी क्षेत्र में सुलग रहीं आंदोलन की चिंगारी,स्वीकृति के चार साल बाद भी नहीं बनी सड़क,दो विभागों के पेंच में फसी अधूरे सड़क का निर्माण,शासन प्रशासन और नेता बने मूकदर्शक,कलेक्टर हटाओ जशपुर बचाओ का लगा था..नारा,तख्तियां लेकर ग्रामीण हुये थे…एकजुट..अब फिर..??*

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जशपुरनगर:- वनक्षेत्र नारायणपुर और बादलखोल अभयारण्य से होकर गुजरने वाली जोराजाम से लोटाडांड़ तक 14.5 किमी की सड़क के लिए वर्ष 2018 में 4 करोड़ 49 लाख 98 हजार रुपए की प्रशासनिक स्वीकृति मिली थी। इस स्वीकृति के बाद सड़क का निर्माण भी शुरू हुआ। अब तक 10 किमी की सड़क का निर्माण हो चुका है, लेकिन डूमरपानी जंगल इलाके में पड़ने वाले 4 किमी की सड़क का काम अटका पड़ा है। बताया जाता है कि यह इलाका एलिफेंट रिजर्व फॉरेस्ट सेंचुरी का है, इसलिए इस इलाके में सड़क बनाने के लिए एनओसी नहीं दी जा रही है।

हालांकि एनओसी के नाम पर अभयारण्य प्रशासन ने निर्माण एजेंसी पीएमजीएसवाई से दो बार रजिस्ट्रेशन शुल्क वसूल कर लिए हैं। डूमरपानी से लोटाडांड़ तक की सड़क बगीचा ब्लॉक के तीन ग्राम पंचायत गायलूंगा, कलिया और बुटुंगा को जोड़ती है। इस इलाके में सड़क बनी पर 4 किमी की सड़क नहीं बन पाने से ग्रामीणों की परेशानी कम नहीं हुई है। बरसात के दिनों में इस सड़क पर चलना मुश्किल होता है। सड़क पर इतना ज्यादा कीचड़ होता है कि वाहनों के पहिए कीचड़ में फंस जाते हैं और जाम लग जाता है।

बरसात के दिनों में इन इलाकों के गांव से आपातकाल में भी पहुंच पाना मुश्किल होता है। इधर बरसात व ठंड के दिनों में इस सड़क पर पत्थर व गड्‌ढ़े भरे होते हैं। इसलिए चार किमी की दूरी किसी भी वाहन से तय करने में आधे घंटे का वक्त लग जाता है। लग्जरी कारों से इस सड़क पर चलना मुश्किल होता है। क्योंकि इस जगहों पर ऐसे गड्‌ढ़े बने हैं जहां से गाड़ी को पार करना मुश्किल होता है।

एलिफेंट रिजर्व फॉरेस्ट सेंचुरी का एरिया होने के कारण एनओसी में हो रही देरी

10.6 किलोमीटर सड़क निर्माण का हुआ था टेंडर
जोराजाम से लोटाडाँड़ तक की सड़क की लंबाई 14.5 किमी भले ही है, पर पीएमजीएसवाई विभाग में उस वक्त 10.6 किमी की एरिया के लिए काम का टेंडर हुआ था। 3 करोड़ 89 लाख की लागत से यह सड़क बन चुकी है। फॉरेस्ट क्लीयरेंस नहीं होने की वजह से उस वक्त भी डूमरपानी जंगल की सड़क की स्वीकृति नहीं मिली थी।

गड्‌ढों से परेशान 10 गांव के लोग फिर से आंदोलन करने की कर रहे तैयारी
4 किमी की सड़क नहीं बनने से ग्रामीण परेशान हैं और एक बार फिर आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं। गायलूंगा के उप सरपंच शिव यादव ने बताया कि उन्होंने कई बार सड़क पूरी करने की मांग उठाई है। इसके बाद भी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। ग्रामीणों की समस्या जस की तस है। इसलिए एक बार फिर से सभी गांव के ग्रामीण एकजुट होकर आंदोलन करेंगे।

गौरतबल है कि 4 किमी की सड़क अधूरी होने से ग्राम पंचायत गायलूंगा के गायलूंगा, लोटाडांड़, खेजअंबा, ग्राम पंचायत कलिया में कलिया, सिहारडांड़ और बनखेता, ग्राम पंचायत बुटुंगा में बुटुंगा, कुड़ाटेपना, रामपुर, डूमरपानी और मछलीडूमर के ग्रामीणों को आवागमन में परेशानी हो रही है।

पत्थरगढ़ी आंदोलन के बाद मिली थी क्षेत्र की बदहाल सड़क को स्वीकृति,आपको बता दें कि इस आंदोलन में क्षेत्र भर के ग्रामीण एकजुट होकर उपेक्षित सड़क सहित पेयजल जैसे मूलभूत सुविधाओं से उपेक्षित लोगो ने पहली बार कलेक्टर हटाओ जशपुर बचाओ का नारा लगाते हुये हाथों में तख्तियां लेकर इसका जमकर विरोध किया गया था।
इसके बाद जोराजाम से लोटाडांड़ तक की सड़क की स्वीकृति पत्थरगढ़ी आंदोलन के बाद मिली थी। वर्ष 2018 में अनुसूचित जाति व जनजाति समुदाय के लोगों ने मिलकर पत्थरगड़ी आंदोलन शुरू किया था। ग्रामीण अपने इलाके में विकास चाह रहे थे। आंदोलन के दौरान कई घटनाएं भी हुई थीं, जिसमें प्रशासनिक अधिकारियों की टीम को बंधक बनाने, थाना की गेट में ताला जड़ने जैसी घटनाएं हुई थीं। इसके बाद वर्ष 2018 में सड़क को स्वीकृति मिली थी। तात्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने उस वक्त इस सड़क के साथ करोड़ों के कार्य की घोषणा कर कहा था कि जशपुर को विकासगड़ी के नाम से जाना जाएगा।

एनओसी के लिए एंजेसी वाइल्ड लाइफ स्टेट बोर्ड में फाॅर्म जमा करें
^जब फॉरेस्ट एरिया में सड़क बन रही है तो सेंचुरी एरिया में भी बन जाएगी। इसके लिए निर्माण एजेंसी को ध्यान नहीं दे रही है । निर्माण एजेंसी एलिफेंट रिजर्व सरगुजा से फार्म लेकर उसकी सभी कंडिकाओं को भरकर वाइल्ड लाइफ स्टेट बोर्ड में जमा करे। वहां से एनओसी मिलेगी। वहां से एनओसी मिलने के बाद निर्माण एजेंसी चार किमी की बची हुई सड़क को बना सकती है।

बीबी केरकेट्‌टा, एसडीओ, बादलखोल

2 बार शुल्क जमा करने के बाद भी अब तक फॉरेस्ट ने नहीं दी एनओसी
“एलिफेंट रिजर्व फॉरेस्ट सेंचुरी एरिया होने की वजह से हमने फॉरेस्ट क्लीयरेंस के लिए सभी औपचारिकताएं पूरी की थी। फॉरेस्ट की तात्कालीन डीएफओ प्रभाकर खलखो ने एनओसी मिल जाने की बात कही थी। सरगुजा के कार्यालय में जाकर दो बार हम रजिस्ट्रेशन शुल्क भी जमा कर चुके हैं, लेकिन अब तक एनओसी नहीं दी गई है। तीन साल से एनओसी को लेकर हम परेशान हैं। अब तो रिवाइज इस्टीमेट भी बनाकर भेजने पर भी स्वीकृति मिलना मुश्किल है।”

-सुधीर पटेल, इंजिनियर, पीएमजीएसवाई

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