एक अपील:- एसके गुप्ता(वन विभाग जशपुर)
जशपुरनगर। हाथी एक सामाजिक एवं बहुत ही संवेदनशील प्राणी है। हमारा इन से पौराणिक काल से मधुर संबंध रहा है। हाथियों का संबंध कई देवी देवताओं से रहा है। इन्हें सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। मानव सभ्यता के विकास में इनका महत्वपूर्ण योगदान है। सनातन संस्कृति में इनकी पूजा की जाती है। सभी जानते हैं कि यह सबसे बड़ा थलचर स्तनपायी है। विशालकाय होने के कारण इसे जीवित रहने के लिए अधिक भोजन एवं पानी की आवश्यकता होती है। स्वंछद एवं घुमंतू स्वभाव का होने के कारण इसे विचरण के लिए लगातार बड़ा वन क्षेत्र की भी आवश्यकता होती है। जो पहले उपलब्ध भी थे। वर्तमान में मानवीय हस्ताक्षेप के कारण वन विखंडित हो गये हैं। उनके प्राकृतिक आवास जो वन हैं, के गुणवत्ता में मानवीय हस्ताक्षेप के कारण गिरावट आई है। इन सब कारणों से जीवन के लिए संघर्ष बढ़ा है। कई बार दैनिक जीवन की आवश्यकता की पूर्ति के लिए आबादी क्षेत्र में प्रवेश कर जाते हैं। हाथी पूर्णतः शाकाहारी है। मानव को मारना ,आतंकित करना, दहशत फैलाना उसका स्वभाव नहीं है। मानवीय हस्ताक्षेप के कारण उत्तेजित होकर कई बार जन हानि कर देता है। जिसके कारण हम उसे हत्यारा,दुर्दांत आतंकी,दहशतगर्द,दुश्मन आदि से संबोधित करते हैं। इस तरह के संबोधन से एक नाकारात्मक वातावरण निर्मित होता है, जो मानव हाथी द्वंद्व प्रबंधन के लिए उचित परिस्थिति नहीं बनाता। हमें इस नाकारात्मक सोच को छोड़ना होगा। हाथी के उपस्थिति को स्वीकार करते हुए उसके स्वभाव के अनुसार अपने व्यवहार में थोड़ा परिवर्तन करते हुए, उसके साथ जीने की कला सीखना होगा। एक साकारात्मक वातावरण विकसित करने का प्रयास करना होगा। यदि यह हो सका तो मानव हाथी द्वंद्व का अंत हो सकेगा एवं सहचर्य का वातावरण बन सकेगा। यह कार्य हमारे सम्मानीय मिडिया के साथी ही कर सकते हैं। अतः आप सबसे अनुरोध है कि इस बात से सहमत हों तो इस दिशा में सार्थक शुरुआत किया जावे।