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*आस्था:– एकादशी कर्मा पर्व की ग्रामीण इलाकों में पूजा अर्चना शुरू, बड़ी संख्या में जुटे श्रद्धालु, रात भर मांदर की थाप से झूमेंगे लोग………*

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जशपुरनगर।जिले में एकादशी कर्मा पर्व को धूमधाम से मनाया जा रहा है, ग्रामीण इलाकों में भादो मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाने वाला करमा पर्व एक विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है। यह पर्व आदिवासी समाज में खुशहाली, फसल की अच्छी पैदावार, और भाई-बहन के रिश्ते की मजबूती का प्रतीक माना जाता है। इस पर्व को आदिवासी समुदाय बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं, और इसकी तैयारियां कई दिनों पहले से ही शुरू हो जाती हैं।

कुंवारी कन्याओं द्वारा व्रत और करम पेड़ की पूजा:

करमा पर्व का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा कुंवारी कन्याओं द्वारा व्रत रखना और करम पेड़ की पूजा करना होता है। पूजा के लिए गांव की कुंवारी कन्याएं एकत्रित होकर करम पेड़ की डगाल (शाखा) को काटती हैं और उसे गांव के प्रमुख स्थल पर लाकर स्थापित करती हैं। करम पेड़ की यह शाखा प्रकृति की देवी के रूप में पूजी जाती है, जो समृद्धि, फसल की वृद्धि और परिवार के सुख-समृद्धि के लिए होती है। कन्याएं इस दिन उपवास रखती हैं और करम डगाल की विशेष विधि से पूजा-अर्चना करती हैं।

आदिवासी संस्कृति का अभिन्न अंग: मांदर की थाप और लोक संगीत

करमा पर्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण होता है। पूजा-अर्चना के बाद, ग्रामीण और आदिवासी समाज के लोग पूरे जोश और उत्साह के साथ रात भर लोक संगीत, मांदर और अन्य पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुनों पर झूमते हैं। मांदर की थाप पर नृत्य करना करमा पर्व का मुख्य आकर्षण होता है, जिसमें युवा और वृद्ध सभी एक साथ मिलकर हिस्सा लेते हैं। यह उत्सव आदिवासी संस्कृति की धरोहर और एकता का प्रतीक है, जिसमें सामूहिकता और भाईचारे की भावना झलकती है।

करमा पर्व का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

करमा पर्व का आयोजन न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने का भी काम करता है। इस पर्व में आदिवासी समाज के लोग अपने रीति-रिवाजों, परंपराओं और मान्यताओं को जीवित रखते हुए अगली पीढ़ी को इसे सौंपते हैं। इस पर्व का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह फसल के मौसम के साथ जुड़ा होता है, और इसे प्रकृति और कृषि से जुड़े आभार पर्व के रूप में भी देखा जाता है।इस प्रकार, एकादशी करमा पर्व ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में धूमधाम से मनाया जाता है, जिसमें धार्मिक श्रद्धा और सांस्कृतिक परंपराओं का अद्भुत समागम देखने को मिलता है।

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