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*पड़ताल:- क्या कांग्रेस की तरह भाजपा भी सेक्युलरिज्म के रास्ते पर बढ़ रही है ?भाजपा के इस रणनीति के क्या होगें परिणाम आइये करें पड़ताल…*

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जशपुरनगर। पिछले 70 वर्षों से भारत की राजनीति में कांग्रेस हावी रही और इसका प्रमुख कारण कांग्रेस का सेक्युलरिज्म और तुष्टिकरण की नीति थी ।कालांतर में जब देश के मतदाता कांग्रेस की इस नीति से ऊब गए तभी वर्ष 2014 में भाजपा कट्टर हिंदुत्व की विचार धारा को लेकर चुनावी मैदान में कूदी और इसका आश्चर्यजनक परिणाम भाजपा को मिला जब आजादी के बाद पहली बार कोई गैर कांग्रेसी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला ।और उसके बाद से ही भाजपा ने अपने हिंदुत्व के मुद्दे को लेकर न केवल देश मे बल्कि उत्तरप्रदेश और आसाम जैसे राज्यों में भी अपनी धाक जमा कर रखी है ।हालांकि कर्नाटक एवम हिमाचल प्रदेश में भाजपा की यह रणनीति कामयाब नहीं हुई और भाजपा को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा ,जबकि कर्नाटक चुनाव में भाजपा ने बजरंगबली को ही अपना चुनावी मेनिफेस्टो बनाया था । राजनीति के पंडितों की माने तो कर्नाटक चुनाव के बाद से ही भाजपा ने अपने चुनाव लड़ने की रणनीति में व्यापक परिवर्तन करना शुरू कर दिया और चूंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा तीन तलाक जैसे मुद्दे पर कानून बनाने के बाद जिस गति से मुश्लिम महिलाएं भाजपा की ओर आकर्षित हो रही थी ऐसे समय मे भाजपा के आनुषंगिक संगठन आरएसएस ने एक कदम और बढ़ाते हुए राष्ट्रीय मुश्लिम मंच की तर्ज पर राष्ट्रीय ईसाई मंच का गठन कर दिया । इसके बाद से ही लगातार भाजपा के शीर्ष नेताओं के सेक्युलर कार्यक्रम के फोटो वायरल होने लगे इसमें संघ प्रमुख मोहन भागवत ने यह बयान देते हुए की हर मस्जिद में शिव लिंग न ढूंढे एक छोंका और लगा दिया।
बात इतने में ही नहीं रुकी बल्कि छत्तीसगढ़ के वर्तमान चुनाव में भाजपा ने जो 21 प्रत्याशियों की घोषणा की उनमें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सरगुजा संभाग के लुंड्रा विधानसभा सीट पर ईसाई धर्मावलम्बी प्रबोध मिंज को उम्मीदवार बनाया गया है ।
भाजपा के इस सूची के बाद से ही प्रदेश में कार्य कर रहे विभिन्न अनुषांगिक संगठन के लोगों में चर्चा यह व्याप्त है कि भाजपा अगली सूची में किसी भी ऐसे व्यक्ति को उम्मीदवार नहीं बनाएगी जिसकी छवि हिन्दू वादी है और इस लिए ऐसे नामो की सूची लेकर भाजपा के सर्वेयरों ने सर्वे किया है।विदित हो कि पूर्व में जारी 21 उम्मीदवारों में से कोई भी उम्मीदवार ऐसा नहीं है जो भाजपा के किसी आनुषंगिक संगठन से प्रयत्क्ष रूप से जुड़ा हो ,बल्कि उन्हें मात्र इसलिए प्राथमिकता दी गई है कि वे अपनी जाति और समाज मे अच्छी पैठ रखते हैं।
बहरहाल जो भी हो भाजपा की यह रणनीति छत्तीसगढ़ में कितना प्रभावी होगा यह तो आने वाले चुनाव के परिणाम ही बताएंगे लेकिन यह तय है कि लोकसभा चुनाव के इस सेमीफाइनल की रणनीति कहीं फाइनल मैच में भाजपा के लिए नुकसान दायक न हो जाए ।

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