कांसाबेल। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के उप सेवा केंद्र कांसाबेल में महाशिवरात्रि के अवसर पर 88वीं त्रिमूर्ति शिव जयंती उत्सव मनाया गया। मौके पर भाजपा जिला अध्यक्ष सुनील गुप्ता, विश्व हिंदू परिषद के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुभाष अग्रवाल, सहायक करारोपण अधिकारी भगत, पी डब्ल्यू डी सब इंजीनियर कैलाश शंकर, ब्र.कु. बसंती दीदी, ब्र.कु कुसुम बहन, ब्र.कु सुशीला बहन, ब्र.कु. शिव भाई एवं संस्था के कई भाई बहनें उपस्थित रहे। इस अवसर पर शिव ध्वज फहराकर ध्वज के नीचे प्रतिज्ञा की कि सदा शुभकामना और शुभकामना रखते हुए सभी के प्रति रहम और कल्याण की भावना रखेंगे।
तत्पश्चात बहनों ने सुनील गुप्ता से संस्था की गतिविधियों को साझा किया । इसी बीच श्री गुप्ता ने गतिविधियों में सहयोग देने का आश्वासन भी दिया। साथ ही साथ सुभाष अग्रवाल विगत 40 वर्षों से संस्थान की विभिन्न गतिविधियों में सहयोग देते आ रहे हैं।
गुमला मुख्य सेवा केंद्र संचालिका शांति दीदी के मार्गदर्शन में बहनों ने शिवरात्रि का आध्यात्मिक रहस्य बतलाया कि कलयुग के अंतिम चरण में जब मनुष्य धर्म भ्रष्ट और कर्म भ्रष्ट होकर तुच्क्ष बुद्धि बन जाता है, तब परमात्मा शिव संसार के कल्याण हेतु सभी मनुष्यों को दुख-दर्द, अशांति एवं विकारों के चंगुल से छुड़ाकर, ज्ञान की ज्योति और पवित्रता की किरणें बिखेर कर सुख-शांति, आनंद संपन्न मनुष्य में दिव्यता की पुनः स्थापना करते हैं। परमात्मा के अवतरण की दिव्य घटना परकाया प्रवेश द्वारा ऐसे समय पर घटती है। परमात्मा शिव के “दिव्य और अलौकिक जन्म” की पुनीत स्मृति में ही शिवरात्रि अर्थात् शिव जयंती का त्यौहार मनाया जाता है।
भारत के कोने कोने में “शिव” के अनेकों मंदिर हैं, जिनमें शिव का प्रतीक शिवलिंग के रूप में स्थापित है। शिव को “स्वयंभू” भी कहा जाता है जिसका अभिप्राय है कि, वे स्वयं प्रकट होकर अपना यथार्थ परिचय देते हैं, इसलिए उनका अवतरण होता है, जन्म नहीं। निराकार ज्योति स्वरूप परमात्मा का गुण और कर्तव्य वाचक नाम “शिव” है, वह परम चैतन्य शक्ति हैं और उन्हें सत् चित् आनंद स्वरूप कहते हैं। वे सदा शाश्वत हैं जो जीवन-मरण के चक्र से परे हैं और सभी गुणों के सागर हैं।
इस परिवर्तन की अंतिम बेला में देवों के देव महादेव; स्वयं परमपिता शिव परमात्मा अज्ञान निद्रा में सोए हुए मनुष्यों को ज्ञान और योगबल द्वारा मनुष्यों के दृष्टिकोण और सोच विचार को महान बनाने का दिव्य कर्त्तव्य करते हैं। जिससे उनके जीवन में परिवर्तन आता है और वह दैहिक संबंधों को भूलकर आत्मिक संबंधों को अपने जीवन का हिस्सा बना लेते हैं।