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*समीक्षा :-क्या राहुल गांधी की पदयात्रा ने आरएसएस को अपनी सौ वर्ष पुरानी विचार धारा को बदलने को मजबूर कर दिया है ?—पढ़िये,एक विश्लेषण पद यात्रा बनाम विचारधारा…!*

 

जशपुरनगर। यूं तो विचारधाराओं की लड़ाई देश मे लंबे समय से लड़ी जा रही है ,और विचारधाराओं ने समाज और राजनीति का ध्रुवीकरण किया है।जो देश मे हर तरफ दिखाई पड़ रही है ।देश की राजनीति भी वैचारिक रूप से दक्षिण पंथी भाजपा और वामपंथी पार्टियों की दो पटरियों में चल रही है। देश मे लम्बे समय तक अपनी विचारधारा को लेकर काम कर रही संस्था आरएसएस से सभी परिचित हैं और आरएसएस की इसी विचारधारा से प्रभवित होकर राजनीति के क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी काम कर रही है।और इन दोनों की संगठन अपने को हिन्दू विचारधारा का घोषित कर रखें है और अब तो आरएसएस पर समाजिक संगठन से अधिक धार्मिक संगठन का तमगा लगा हुआ है ।और यह माना जाता है कि आरएसएस विश्व का सबसे बड़ा सामाजिक संगठन है किंतु इस संगठन में गैर हिंदुओ की संख्या नगण्य ही है।

कालांतर में इसके एक नेता इंद्रेश कुमार के द्वारा राष्ट्रीय मुश्लिम मंच का गठन कर मुश्लिमो को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास तो किया है बावजूद इसके इन सभी संगठनों के कार्यकर्ता लगातार मुश्लिम और ईसाइयों के खिलाफ बयानबाजी करते हुए देखे जा सकते हैं हालांकि मोदी सरकार ने अपने एजेंडे से परे जाते हुए पहले ही सबका साथ सबका विकास नारा देकर तथा तीन तलाक जैसे कानून बनाकर अपने को मुश्लिम हितेषी पार्टी बनाने का दावा किया है लेकिन इससे न तो हिन्दू और न ही मुश्लिम खुश हैं ।मुश्लिम मोदी सरकार से इसलिए भी नाराज हैं कि उन्हें अंदेशा है कि मोदी सरकार एन आर सी लागू कर मुश्लिमों को देश से बाहर करना चाहती है ।

बहरहाल ऐसे कई मुद्दे हैं किंतु हम बात कर रहे हैं राहुल गाँधी के पदयात्रा की जिसमें लगातार राहुल के द्वारा आरएसएस और भाजपा पर देश मे धर्मों के बीच नफरत फैलाने का आरोप लगाया जा रहा है जिसके कारण देश मे इन दोनों संगठनों के विरुद्ध धीरे धीरे आक्रोश बढ़ रहा है ।ऐसे समय में आरएसएस के द्वारा जहां एक तरफ धर्मांतरित ईसाइयों के विरुद्ध डिलिस्टिंग का आंदोलन चलाया जा रहा है तथा लव जेहाद, धर्मान्तरण और गौहत्या जैसे आरोप लगाकर मुश्लिमो और ईसाइयों के विरुद्ध आंदोलन किया जा रहा है वहीं अब दूसरी ओर अपनी विचारधारा के विपरीत मोहन भागवत के द्वारा अपने भाषणों में कहा जा रहा है कि *भारत मे रहने वाले सभी लोग हिन्दू हैं हिन्दू धर्म नहीं एक विचारधारा है।इससे भी आगे बढ़कर उन्होंने काशी के विवाद को रोकने के लिए यहां तक कह दिए कि *हर मस्जिद में शिव लिंग न ढूंढे*
सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि इससे भी आगे बढ़कर आरएसएस के द्वारा अपने नेता इन्देश कुमार के नेतृत्व में राष्ट्रीय मुश्लिम मंच की तर्ज पर राष्ट्रीय ईसाई मंच का गठन भी कर लिया गया है इसी बीच भाजपा के राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में प्रधानमंत्री ने जो कहा वह भाजपा और आरएसएस के कार्यकर्ताओं के गले नहीं उतर रहा है जिसमें उन्होंने भाजपा कार्यकर्ताओं का आह्वान करते हुए कहा कि भाजपा के लोग अब अधिक से अधिक ईसाइयों और मुश्लमानो के घर जाएं और उनसे संपर्क बढ़ाएं भले वो वोट न दें फिर भी हमें उन तक पहुँचना चाहिए ।

अपनी पार्टी के विचारधारा से हटकर दिए गए इस भाषण पर राजनीति के जानकार यह कहने में संकोच नहीं कर रहे हैं कि आरएसएस और भाजपा के विचारधारा में आये इस बड़े परिवर्तन की एक मात्र वजह राहुल गाँधी की पदयात्रा है जिसमें उनके द्वारा लगाए गए आरोपों का खंडन करने तथा अपनी राजनीतिक क्षवि सुधारने की नियत से यह परिवर्तन किया जा रहा है ,बहरहाल जो भी हो अभी तो यात्रा मात्र 3000 किमी की दूरी मात्र तय की है जैसे जैसे यह दूरी बढ़ती है वैसे वैसे आरएसएस और बीजेपी मुश्लिम और ईसाइयों के निकट आने का प्रयास करेंगे और यदि ऐसा सम्भव हुआ तो 2024 की राजनीति किस करवट बैठेगी कह पाना मुश्किल होगा ।

गौर इस बात पर भी किया जाना चाहिए कि आरएसएस एवं भाजपा की भांति कांग्रेस ने 2013 में भगवा का रास्ता अपनाने की कोशिश की थी पर मुह के बल गिरे। देखने वाली बात ये होगी कि अब जब भगवा में हरा रंग और सफेद रंग मिलाने की कोशिश की जा रही है तब भगवा के समर्थक किस हद तक इस नए भगवे के स्वरूप को स्वीकारेंगे।

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