कहा जाता है कि वन वास्तव में जी वन से जुड़ा हुआ है इसीलिए जीवन में वन अनिवार्य है। यह बात हमारे पूर्वज अच्छी तरह से जानते थे ।और इसी लिए वन हमारे जीवन का आधार रहा ।न केवल धर्म संस्कृति और परम्परा वन से जुड़े थे बल्कि जहां एक तरफ सामान्य वर्ग के गोत्र वन में निवास करने वाले साधु संतों के नाम के साथ यथा भारद्वाज, कश्यप, सांडिल्य आदि ऋषियों से जुड़े थे वहीं दूसरी तरफ अधिकांश वन निवासियों का गोत्र वन के पेड़ पौधे लताएं पशु पक्षियों जलीय जीवों से जुड़े हैं विशेष रूप से उरांव जनजाति के गोत्र कुजूर कुजरी की लता से ,लकड़ा वन्य जीव से ,मिंज मछली से जुड़ा हुआ है । सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि आज भी कई गांव के नाम भी किसी न किसी पेड़ जिसकी बाहुल्यता वहां है उनसे जुड़ी हुई है जैसे जहां साल के वृक्ष अधिक हैं वह सरई टोली, जँहा आम के वृक्ष हैं वह आम्बा टोली ,जहां पाकर के वृक्ष हैं वो पकरी टोली, आदि रखे गए हैं।
कुल मिलाकर यदि देखा जाए तो कभी वास्तव में वन जीवन का आधार थे ,लेकिन कालांतर में लोगों के जुड़ाव वनों से धीरे धीरे कम होता गया जो लोग कभी स्वयं से वनों की रक्षा किया करते थे ,दुर्भाग्य से वही लोग अब वनों की बेतहाशा कटाई कर रहे हैं सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि तुच्छ कारणों से जैसे महुवा बीनने ,शिकार करने ,पुटू उगाने आदि के नाम पर अरबों की सम्पत्ति को आग के हवाले कर रहे हैं।शायद उन्हें इसका अंदाजा नहीं है लेकिन जब वन की कमी महसूस होगी तब तक शायद बहुत देर हो चुकी होगी ।इसलिए समय रहते आइये इस अंतराष्ट्रीय वन दिवस पर इस वर्ष हम वनों को आग से बचाने का संकल्प लें और इस हेतु अधिक से अधिक लोगों को प्रेरित भी करें।
जय जंगल विश्व मंगल
रामप्रकाश राम
वन मित्र जशपुर