पिटवा लोहा से बने इस विष्णु स्तम्भ का निर्माण सम्भवतः जशपुर क्षेत्र में निवासरत जनजाति अगरिया के पूर्वजों के द्वारा किया गया है। जिसका प्रमाण है की जशपुर क्षेत्र में आज भी अगरिया जनजाति के लोग नदी के बालू और पहाड़ में मिलने वाले पत्थरों को गलाकर लोहा निकालने का कार्य करते हैं उक्त प्रक्रिया लगभग 8 घण्टे तक चलती है जिससे निकलने वाले लोहे को कुँआरी लोहा कहा जाता है यह केवल धातु नही है बल्कि औषधि भी है आयुर्वेद के अनुसार मनुष्य के शरीर को लोहतत्व की भी आवश्यकता होती है और यदि शरीर में लोहतत्व की कमी होती है तो व्यक्ति रक्त अल्पता (एनीमिया)रोग से पीड़ित होता है ऐसी स्थिति में रोगी को लोहा सव, मण्डूर भस्म या आयरन की गोलियां खाने को दी जाती हैं किन्तु इससे भी आगे बढ़ कर यदि प्राकृतिक ईलाज पद्धति को देखा जाए तो इस लोहे से बने तवा, कड़ाही में यदि भोजन बनाकर खाया जाए तो लोह तत्व की पूर्ति स्वमेव हो जाती है!!!
जशपुरांचल में इस पद्धति से लोहा बनाने का कार्य तब से चल रहा है जब मानव पाषाण युग से लोह युग में प्रवेश किया था, सौभाग्य से जशपुर में पाषाण युग के अवशेष तो मिल ही रहे हैं साथ ही लोह युग के प्रारम्भिक साक्ष्य आज भी मौजूद हैं !कालान्तर में अंग्रेजो के द्वारा अगरिया जनजाति के लोगों के लोहा बनाने पर आपत्ति थी क्योकि तब लोह उद्योग को उन्हें स्थापित करना कारणवश अंग्रेजो के द्वारा इनके चिमनियों को ढूंढ ढूंढ कर नष्ट किया जाने लगा तब इस जनजाति के लोगों के द्वारा पहाड़ों के पीछे छिपकर लोहा बनाने का कार्य किया जाता था ताकि स्थानीय किसानों को कृषि उपकरण प्राप्त हो सके !इस सम्बन्ध में प्रसिद्ध मानवशास्त्री वेरियर एलविन ने भी अपनी किताब में जशपुर के कई क्षेत्रों आस्ता इत्यादि का उल्लेख करते हुए लिखा है की वहाँ माउंटेन ऑफ स्लेगस है और आज भी यह साक्ष्य जशपुर में मौजूद है सम्भवतः ये स्लेगस दिल्ली स्थित इसी विष्णु स्तम्भ के हैं जिसके सम्बन्ध में यहाँ जानकारी न होना उल्लेखित है किन्तु यदि गम्भीरता पूर्वक रिसर्च किया जाए तो इन स्लेगस और विष्णु स्तम्भ का आपस में सम्बन्ध उजागर हो सकता है !!!!
रामप्रकाश पाण्डेय
अधिवक्ता जशपुर नगर
9406331168