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*आदिवासी समाज का विलुप्त होता प्राचीन संस्कृति सहिला(डांटा)नाच को बचाने तीन गांव के ग्रामीणों ने शुरू की पहल,गांव की देवी को खुश करने स्वयं देवी का रूप बना कर पूरे क्षेत्र में घुमा रहे,देखिये इस अनोखा नृत्य का पूरा वीडियो,आदिवासी संस्कृति पर राकेश गुप्ता की खास रिपोर्ट…*

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देखिये वीडियो,आदिवासीयों का विलुप्त होता प्राचीन संस्कृति सहिला(डांटा) नृत्य एक अनोखा परम्परा.......

जशपुर/सन्ना(राकेश गुप्ता की रिपोर्ट):- आदिवासी समुदाय में ऐसे बहुत सारे संस्कृति हैं जिनके कारण ही उन्हें आज आदिवासी कहा जाता है।जिसमें प्रमुख रूप से इनका नृत्य,गीत,पूजा पद्धति है।ऐसा ही एक आदिवासी समाज का विलुप्त होता संस्कृति का नाच कहें या पूजा पद्धति है जिसे क्षेत्रीय भाषा में सहिला नाच और डांटा खेलना कहा जाता है।बताया जाता है कि यह सहिला नृत्य तीन साल पांच साल में एक बार किया जाता है।जिसमें गांव के लोग एक जुट हो कर हिंदी महिने के अघन माह में देवी देवताओं का स्वरूप बना कर गांव की देवी माता का पूजा करके गांव से निकलते हैं और पूरे क्षेत्र के गांव गांव जा कर सहिला नाचा जाता है।इसमें खास बात यह बताया जाता है कि जब यह नाच के लिए लोग निकलते हैं तो गांव की देवी खुद इस नाच में प्रसन्न हो कर स्वयं अप्रत्यक्ष रूप से सामिल होंती हैं।जब यह नाच गांव के अखरा में किय्या जाता है तब उस आप पास के सभी घर वालों के द्वारा नृत्य करने वालों को अपने घर से स्वेक्षा से धान,चावल वगैरा निकाल कर दिया जाता है।

आपको बता दें कि यह आदिवासी समुदाय का प्राचीन और बहुत सुंदर संस्कृति में से एक है परन्तु यह संस्कृति धीरे धीरे विलुप्तता के कगार पर पहुंच चुकी थी परन्तु इस वर्ष देखा जा रहा है कि जशपुर जिले के सन्ना क्षेत्र के कोपा,बम्हनी,लरंगा गांव के लोग एक जुट हो कर इस संस्कृति की रक्षा के गांव से पूजा करके दो दिनों से निकले हैं और पूरे क्षेत्र के गांव गांव जा कर काफी सुंदर तरीके से सहिला नाचा जा रहा है जिसमें गांव गांव के लोगो का भी रुझान काफी अच्छा देखा जा रहा है।आप भी देखिये इस सहिला नृत्य का पूरा वीडियो।

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