कोतबा/जशपुरनगर। जशपुर जिले के कोतवाली पुलिस चौकी अंतर्गत नगर पंचायत के वार्ड नंबर 9 निवासी 32 वर्ष के युवा छबील मुंडा पिता बुधु मुंडा ने घर के छप्पर में तार के सहारे फांसी का फंदा बनाकर आत्महत्या कर ली। घटना 23 सितंबर सुबह 5:00 बजे की है। इससे पहले मृतक छबील मुंडा ने 22 सितंबर को आसपास के दर्जनों लोगों को अपने अंतिम संस्कार में आने के लिए यह कहते हुए आमंत्रित किया कि कल मेरी मिट्टी है आप लोग जरूर आना।
स्थानीय निवासियों ने बताया कि वह 1 दिन पहले अचानक भीख मांगने निकल पड़ा था इसी दौरान कई लोगों को अपने अंतिम संस्कार में आमंत्रित करने के लिए अगले दिन बोल रहा था। स्थानीय निवासियों और पड़ोसियों ने यह भी बताया वह मानसिक रूप से विक्षिप्त भी था और उसके व्यवहार गंभीर मानसिक बीमारी स्किजोफ्रेनिया, पर्सनालिटी डिसऑर्डर व डिप्रेशन के प्रतीत होते हैं। परिजनों ने उसके इलाज की कभी कोशिश नहीं की। वह विवाहित था और उसके बच्चे भी हैं। विस्तृत परिवार परिजनों के साथ नगर पंचायत क्षेत्र का निवासी होने के बावजूद वह मनोचिकित्सा की ओर नहीं जा पाया।
सवाल यह है कि आज शिक्षित वर्ग भी मनोरोग के प्रति अनजान है यह मान लिया जाता है कि विक्षिप्त अवस्था का कोई इलाज नहीं है कुछ लोग पागलपन कहकर झाड़-फूंक का सहारा भी लेते हैं।
सवाल इससे बड़ा यह भी है कि जसपुर जिले में स्पर्श चिकित्सा सहित मनोरोगों के रोगों के इलाज और जागरूकता हेतु बड़े कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं और इसके लिए लाखों करोड़ों रुपए भी खर्च किए जा रहे हैं। विशेष रूप से चिकित्सकों की नियुक्ति की गई है इसके बावजूद लगातार आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं। आत्महत्या अवसाद सहित अन्य मनोरोग का घातक परिणाम या अंत है, यह जानते हुए भी शासन प्रशासन के द्वारा इस विषय को अनिवार्य सेवा का कार्य के रूप में नहीं लिया जा रहा है।
एक अनुमान के मुताबिक वर्ष में जसपुर जिले में करीब 100 लोग आत्महत्या करते हैं जिसमें आधे से अधिक आत्महत्या करने वाले किसान वर्ग के हैं। पिछले एक डेढ़ माह में ही आत्महत्या के कई बड़े मामले सामने आए जिसमें जसपुर जिला मुख्यालय से लगे गम्हरिया में ही 3 आत्महत्या के बड़े मामले सामने आए जिसमें एक युवक ने सार्वजनिक रूप से सैकड़ों लोगों के बीच पेड़ पर चढ़कर आत्महत्या की। आत्महत्या करने से पहले लक्षणों को पहचान कर ना ही कोई बचाने पहल की गई न ही आत्महत्या कर रहे युवक को पेड़ से सुरक्षित बचा पाने के लिए भी कोई स्थानीय स्तर पर व्यवस्था है।
चिकित्सकों के मुताबिक किसी भी प्रकार के मानसिक रोगों का वर्तमान समय में समुचित इलाज है यदि मरीज को लेकर परिजन चिकित्सक के पास पहुंचते हैं। सिजोफ्रेनिया जैसी कुछ गंभीर बीमारियों को छोड़ दें तो बहुत कम ही समय में मानसिक रोगों के मरीज पूर्णता स्वस्थ होकर सामान्य जीवन जी सकते हैं वही सिजोफ्रेनिया जैसी बीमारी में लंबे समय तक दवाखाने की आवश्यकता पड़ती है।