Chhattisgarh
*उरांव जनजाति ही भगवान श्री राम के वंशज हैं:गणेश राम भगत*
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11 months agoon
जशपुरनगर। पूरी दुनिया में श्री राम मंदिर के निर्माण को लेकर जबरजस्त उत्साह देखा जा रहा है । देश में भगवान श्री राम से जुड़ी कई कथाओं की चर्चा हो रही है लोग अपने अपने ढंग से भगवान श्री राम को अपने से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं यहां तक कि कई परिवार अपने को भगवान श्री राम का वास्तविक वंशज बता रहा है ।ऐसे समय में अगर भगवान राम की कथाओं और इतिहास का अध्ययन किया जाए तो एक और ऐसा इतिहास सामने आ सकता है शायद उस ओर अभी तक किसी का ध्यान नहीं गया है लेकिन उस इतिहास से जुड़े लोग अपने को भगवान श्री राम का वास्तविक वंशज मानते हैं सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि ये लोग आज भी अपने नाम के साथ राम शब्द का प्रयोग अनिवार्य रूप से करते है।
हम बात कर रहे हैं बिहार के रोहताश गढ़ के इतिहास और उससे जुड़े हुए उरांव जनजाति के लोगों की जिनका दावा है कि वे भगवान श्री राम के वंशज सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र के पुत्र राजा रोहिताश के वंशज हैं ,इस दावा का समर्थन आज भी बिहार के रोहताश गढ़ में स्थित वह किला करता है जहां प्रत्येक वर्ष माघ पूर्णिमा पर न केवल उरांव समाज के लोग बल्कि देश के अन्य समाज के लोग भी भारी संख्या में जुटते हैं और अपने पुरखों की इस विरासत को देखकर गर्व महसूस करते हैं।
विदित हो कि रोहताश गढ़ के किले का निर्माण राजा हरिश्चंद के पुत्र राजा रोहिताश के द्वारा कराया गया है जहां कालांतर में उरांव जनजाति के पूर्वज शासक हुआ करते थे किंतु आज से लगभग 300 वर्ष पूर्व मुगलों के आक्रमण के बाद उन्हें वहां से बेदखल किया गया तब से उरांव जनजाति के लोग महल छोड़ छोटा नागपुर के जंगलो की ओर पलायन कर गए लेकिन उन्होंने आज भी भगवान राम से जुड़ी अपनी परम्पराओ से कभी समझौता नहीं किया ।
मान्यता है कि रोहताश गढ़ के किले में रहने के दौरान उरांव जनजाति के पुरखे के रूप में जाने जाते थे ।तभी शेरशाह सूरी के द्वारा उनके किले पर हमला किया गया लेकिन तब पुरुष वर्ग जब लड़ाई लड़कर खत्म होने लगे और सोन नदी में खून की नदी बहने लगी तभी राजा और सेनापति की पुत्रियों सिनगी दई और कैली दई के द्वारा राज्य बचाने के लिए स्वयं पुरुषों का वेश धारण कर मोर्चा सम्भाला गया और दो बार मुगलों की सेना को पराजित कर दी कहा जाता है कि तभी मुगलों को गुप्तचर ने सूचना दिया कि मुगलों की सेना जिनसे हार रही है दरअसल वे पुरुष नहीं बल्कि महिलाएँ हैं।और यह जानकारी होने के बाद मुगल सैनिकों ने पुनः उन पर हमला किया और अंततःमहिलाओं को हार का सामना करना पड़ा । इस ऐतिहासिक लड़ाई की याद में आज भी उरांव जनजाति के लोग प्रत्येक 12 वर्ष में *जनी शिकार* की परम्परा का निर्वहन किया जाता है जिसमें महिलाएँ पुरुषों का वेश धारण कर हाँथ में पारम्परिक हथियार लेकर शिकार के लिए निकलती हैं तथा आज भी उरांव महिलाएं अपने माथे पर गोदना से तीन निशान गुदवाती हैं जो इसी इतिहास को प्रदर्शित करता है ।इस घटना को लेकर आज भी उरांव जनजाति में यह गीत गाया जाता है —-
बारो बछर रे जनी शिकार ,जनी कर मुड़े रे पाग रे बंधाये
गोड़े निपुर हांथ तलवार
जनी कर मुड़े रे पाग रे बंधाये
उरांव समाज के वरिष्ठ सदस्य एवम भाजपा के वरिष्ठ नेता एवम पूर्व मंत्री गणेश राम भगत बताते हैं कि मुगलों से हारने के बाद उरांव जनजाति के पुरखे जंगलो की ओर पलायन कर गए और अपने साथ देवी देवताओं को भी लेकर भागे किंतु लगातार मुगलों के द्वारा उनका पीछा करने के कारण अपने देवी देवताओं को साल के घने पेड़ो के बीच छुपा दिए और आगे बढ़ते गए ।कालांतर में वही घने साल पेड़ो का स्थान सरना के रूप में जाना जाने लगा ।
कहा यह भी जाता है कि जब उरांव जनजाति के पुरखे जंगलो में आपस मे मिलते तब एक दूसरे से ओ राम ओ राम बोलकर सम्बोधित करते जिसे बाद में गांव में रहने वाले लोग ओ राम से उरांव कहने लगे।आज भी उड़ीसा क्षेत्र में रहने वाले उरांव जनजाति के लोग अपने नाम के साथ ओराम ही लिखते हैं।
इसके अलावा छत्तीसगढ़ में रहने वाले उरांव जनजाति के लोग अपने नाम के साथ राम शब्द लिखते है यह परम्परा आज भी चली आ रही है ।
रोहताश गढ़ का किला 28 मिल की बाउंड्री से घिरा हुआ है जिसमें महल के अलावा भगवान श्री गणेश जी शिव जी एवम पार्वती जी का मंदिर स्थापित है जहां आज भी निरंतर पूजा होती है जो प्रमाणित करती है कि यह किला राजा रोहिताश के द्वारा तैयार कराया गया है।इसके अलावा आज भी उरांव जनजाति के लोगों की लोककथाओं लोकगीतों में भगवान श्री राम का उल्लेख होता है साथ ही रोहताश गढ़ के शौर्य के इतिहास को स्मरण किया जाता है ऐसे कई तथ्यों को यदि सिलसिलेवार देखा जाए तो यह प्रमाणित होता है कि वास्तव में उरांव जनजाति का सीधा सम्बंध भगवान श्री राम के वंश से है ।