Jashpur
*आंगनबाड़ी भवन जर्जर, सामुदायिक भवन में अव्यवस्थाओं के बीच वर्षो से संचालित हो रहा आंगनबाड़ी केन्द्र, कैसे हो बच्चों का विकास, नहीं मिल रहीं मूलभूत सुविधाएं, जानिये क्या होनी चाहिए आंगनबाड़ी केंद्र में सुविधा…….*
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3 years agoon
कोतबा/जशपुर। :- गाँवो में आंगनबाड़ी केन्द्र की वर्तमान स्थिति दयनीय है। बच्चों के सर्वांगीण विकास की परिकल्पना यहाँ बेमानी नजर आ रही है। वर्षो से आंगनबाड़ी भवन जर्जर हो जाने से गाँव के सामुदायिक भवन में इसका संचालन भारी अव्यवस्थाओं की बीच करने की मजबूरी बनी हुई है। मामला जशपुर जिले के फरसाबहार ब्लॉक के ग्राम पंचायत डुमरिया का है। जहाँ के गांव में गरीब बच्चों को प्ले स्कूल कहें या आंगनबाड़ी केंद्र में समस्याओं का अम्बार लगा हुआ है। आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों को खेलने के लिए खिलौना व मूलभूत सुविधाएं तक नहीं है। आबा कार्यकर्ता अभावग्रस्त स्थिति में आंगनबाड़ी केन्द्र का संचालन मजबूरन कर रही है ।
जशपुर जिले में आंगनबाड़ी केन्द्रों में अधिकांश की जमीनी हकीकत कुछ और ही बयान कर रही है। केन्द्रों के संचालन केवल पोषण आहार खिलाने तक सीमित हो गया है। जहाँ वर्षो से आँगनबाड़ी भवन जर्जर हालत में पड़ा हुआ है। बच्चों की सुरक्षा को देखते हुए ग्रामीणों ने गाँव के सामुदायिक भवन में संचालन वर्षो से करा रहे है। लेकिन जहाँ नौनिहालो को किचन के धुएं में बैठकर भोजन करना पड़ रहा है, तो वहीं उसी भवन के एक कमरें में बैठकर पाठशाला की पहली सीढ़ी में शिक्षा गढ़ रहें है। पौष्टिक आहार के साथ विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से बच्चों को स्वस्थ जीवन प्रदाय करने व खेल खेल में शिक्षा देने की योजना यहाँ पूरी तरह फ्लाप नजर आ रही है। जहाँ आंगनबाड़ी केन्द्र में बच्चों को खेल खेल में आरंभिक शिक्षा प्रदाय की जाती है। लेकिन यहाँ आरंभिक बाल विकास के लिए मूलभूत सुविधाओं की कमी देखने को मिल रही है।अव्यवस्था और शासन प्रशासन की अनदेखी को लेकर पालकों सहित ग्रामीणों में भारी रोष देखा जा रहा है। जहाँ के आंगनबाड़ी केंन्द्रों में केवल पोषण आहार खिला कर कार्यकर्ता अपनी जिम्मेदारी पूरी समझ लेती है। यह मामला फरसाबहार विकास खण्ड के ग्राम पंचायत डुमरिया मुख्य बस्ती का है।यहां पदस्थ कार्यकर्ता श्रीमती गोमती पैंकरा ने बताया कि उनकी नियुक्ति 1988 से हुई है। तब से लेकर आज तक बच्चो के आरंभिक विकास में अपना योगदान देते आ रही है। उनका कहना है कि कई वर्षों बाद बड़ी मुश्किल से गाँव मे आंगनबाड़ी भवन बनाया गया था। लेकिन वह भी इतना घटिया बना की कुछ ही वर्षो में जर्जर हो गया और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया।उन्होंने बताया कि कुछ वर्ष वहां संचालन किया गया बाद में भवन जर्जर होने के कारण बच्चों को पिछले दो वर्षों से ग्रामीणों की सहमति से गाँव के सामुदायिक भवन में बैठाया जा रहा है। उनके मुताबिक 3 से 6 वर्ष के 14 बच्चें है। जबकि 2 से 3 वर्ष के 21 बच्चें हैं।उनका कहना था कि बच्चों को खेल खेल में पढ़ाई के प्रति जागरूक करना और इसमें रुचि लेने के लिये शासन ने आंगनबाड़ी केंद्र की स्थापना की है।लेकिन प्रारंभिक शिक्षा वाले केंद्र का अनदेखी होने के कारण बच्चों सहित पालकों में भारी आक्रोश व्याप्त है। कई बार ग्राम पंचायत सहित विभागीय अधिकारियों को अवगत कराया जा चुका है लेकिन आज तक न तो जर्जर भवन को डिस्मेंटल कर नया निर्माण कराया गया है। न ही उसके मरम्मत को लेकर कोई पहल की गई है। जिससे आम्बा केन्द्र आने में बच्चे भी कम रुचि दिखाते है। सामुदायिक भवन ने बच्चो को दिए जाने वाले राशन को चूहे चट जार जाते है चूहों से राशन बचाने के लिए कोई सुविधा आम्बा केन्द्र में अभी उपलब्ध नही है। न ही हमे गैस चूल्हा मिला है मजबूर हो कर लकड़ी के चूल्हे में बाहर खुले बरामदे में भोजन पकाया जाता है और बच्चो को वही बैठा कर खिलाना पड़ता है फर्श कच्ची होने से बरसात के दिनों में समस्या और भी बढ़ जाती है। आम्बा केन्द्र में बीते 2 साल से नही शासकीय भवन उपलब्ध कराया गया है। नही बच्चो की खेल सामग्री दी गई है, न ही बच्चो के बैठक व्यवस्था का प्रबंध किया गया है। आलम यह है, बैठक व्यवस्था के लिए विभाग ने न तो कुर्सी टेबल दिए न ही दरी दी है। वे अपने ही घर के चटाई व बोरो में बच्चों व महिलाओं को परछी में बैठती है। हैरानी की बात यह है कि बच्चो की खेल-खेल में आरंभिक शिक्षा के लिए विभाग द्वारा न पुस्तिका उपलब्ध कराई गई है। और न ही चार्ट दिए गए है। जुगाड़ की एक पुस्तिका से बच्चों को खेल-खेल में बाल गीत सिखाती है। व डांस करना सिखाती है। सुविधाओं का टोटा होने की वजह से अधिकतर बच्चें केन्द्र नही आते है। जिस वजह से बच्चो के आरंभिक बाल विकास में विभाग की उदासीनता रोड़ा बनी हुई है।
बच्चों की संख्या के अनुपात में नहीं दी गई खेल सामग्री
आंगनबाड़ी केन्द्र डुमरिया में खिलौनो का यही हाल है। इक्का-दुक्का खिलौने ही इस केंद्रों में नजर आते हैं। आंगनबाड़ी केंद्र की स्थापना से लेकर अब तक की स्थिति में खेलने सामग्री वितरण को देखें तो इनके कबाड़ की बिक्री मात्र से नई अधोसंरचना का निर्माण हो जाता लेकिन आज सभी आंगनबाड़ी केंद्र खाली हैं। और गिनती के टूटे-फूटे 12 खिलौने ही मिलते हैं। आंगनबाड़ी केन्द्रों अर्ली चाईल्डहुड एजुकेशन सिस्टम के अंतर्गत खेल-खेल में 3 से 6 साल के बच्चों को 360 प्रकार की गतिविधियों से सर्वांगीण विकास कराने की बात बताई गई थी। पर अब तक 36 प्रकार की गतिविधियों का भी संचालन नहीं किया जा रहा है। केंद्रों में हर माह बच्चों के विकास पत्रक में उनके द्वारा की गई गतिविधियों की जानकारी की एंट्री की जानी होती है। लेकिन ये योजनाएं केवल कागजों में सिमट कर रह गई है। वर्ष 2013 में भारत सरकार ने बाल मनोविज्ञानिक विशेषज्ञों वाली समिति की अनुशंसा पर अर्ली चाईल्ड केयर एंड एजुकेशन पॉलिसी ईसीसीई बनाई गई थी। जिले के 8 विकासखंड सहित नगरीय निकायों में 2931 आंगनबाड़ी केंद्र संचालित हैं। नए सिस्टम के बारे में बताया गया है कि पर्यवेक्षकों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। पर क्रियान्वयन जमीनी हकीकत से कोसों दूर है।
आंगनबाड़ी केंद्र में खेल सामग्री का टोटा
प्रत्येक आंगनबाड़ी केंद्र में बच्चों को खिलौने के साथ ही खिलवाड़ किया जा रहा है। बच्चों को खिलौने के नाम अधिकांश आंगनबाड़ी केंद्रो में खानापूर्ति की गई है। बच्चों की संख्या के हिसाब से खेल सामग्री का वितरण नहीं किया है। जो सामग्री दी गई है, वह पूरी तरह गुणवत्ताहीन हल्के प्लास्टिक के हैं। बच्चों को रोकने के लिए जिस तरह की सामग्री उपलब्ध कराई जानी चाहिए उनका अभाव है। यही कारण है कि बच्चे केंद्र में नहीं रूक रहे हैं।
जिले के अधिकांश आम्बा केन्द्र बिना भवन के संचालित हो रहे
आंगनवाड़ी केंद्र बाल विकास और वृद्धि में सहायता प्रदान करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। आंगनवाड़ी द्वारा प्रदान की जाने वाली प्रमुख सेवाए में अनुपूरक आहार, टीकाकरण स्वास्थय जांच और आगे अस्पतालों को भेजना, स्वास्थय एवं पोषण शिक्षा तथा 3 से 6 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए विद्यालय पूर्व शिक्षा आंगनवाड़ी के लिए कुछ आधारभूत न्यूनतम अवसंरचनात्मक आवश्यताएं हैं जैसे भवन क्षेत्र, बरामदा, खेल का मैदान और शौचालय आदि। आंगनवाड़ी कार्यकर्त्ता आंगनवाड़ी के प्रभावी कार्यकरण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि आंगनबाड़ियों में समुचित अधोसंरचना नहीं है, या ठीक से कार्य नहीं करती तो वे बच्चों को पर्याप्त सहायता प्रदान करने में सर्मथ नहीं हो पाएंगी। मामले की गंभीरता को समझने के बावजूद वर्षो से बिना भवन के केन्द्र का संचालन किया जा रहा है जिस वजह से भवनों की आवश्यकता आंगनबाड़ी केन्द्रों में बनी हुई है।
इन सुविधाओं का होना है सभी आम्बा केन्द्रों में है अनिवार्य
एक भवन जो 63 वर्गमीटर/650 वर्ग फूट से कम न हो तथा कमरे XX3 वर्गमीटर के होने चाहिए।
बरामदा 6X1.5 वर्गमीटर होना चाहिए तथा वह बाधामुक्त होना चाहिए।
खेल का मैदान, खेल सामग्री तथा बाल हितैषी खिलौने
साफ – सफाई, जल और स्वच्छता सुविधाएँ
साफ और स्वच्छ रसोईघर – रसोई और स्टोर 6X3 वर्गमीटर होने चाहिए।
बाल – हितैषी शौचालय – 2 होने चाहिए (2X3 वर्गमीटर)
पहुंच के लिए ढलावदार सुविधाएं
मजबूत तथा रिसावमुक्त छत वाला भवन
मजबूत खिड़कियाँ और दरवाजे
विद्युत कनेक्शन और सुविधा
फर्नीचर, पंखे, विस्तर
जल, बाल्टी, ब्रुश झाडु साबुन, अध्ययन सामग्री।
समस्या को लेकर अजय शर्मा, जिलाअधिकारी महिला बाल विकास विभाग ने बताया कि पूरे जिले में 93 आंगनबाड़ी केन्द्र जर्जर हालत में है। सभी को डिस्मेंटल करने के जिले सभी सीईओ व एसडीएम को पत्र लिखकर सूचित किया गया है। जैसे ही डिस्मेंटल का कार्य हो जाता है हम नए भवनों की स्वीकृति प्रदान करेंगे जिसके लिए पर्याप्त फण्ड उपलब्ध है।