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*भाजपा प्रदेश में किसी आदिवासी महिला को मुख्यमंत्री के रुप में कर सकती है प्रोजेक्ट! आदिवासी वोटरों को साधने बन रही है रणनीति,अगर ऐसा हुआ तो क्या रहेगा समीकरण?पढ़िए ग्राउण्ड जीरो की चुनावी विवेचना…*

जशपुरनगर.( सोनु जायसवाल) जशपुर की राजनीतिक गलियारों में एक दो दिनों से यह चर्चा गर्म है कि भाजपा केंद्रीय नेतृत्व इस बार प्रदेश के आदिवासी वोटरों को साधने के लिए एक ऐसा तीर छोड़ सकता है जिससे न केवल आदिवासी वोट बैंक जुटाया जा सकता है, बल्कि प्रदेश की कांग्रेस सरकार को उखाड़ फेंका जा सकता है ।मजे की बात यह है कि इस कथित रणनीति की सूई जशपुर की ओर घूमती हुई दिखाई दे रही है और बधाइयों का दौर भी शुरू हो चुका है।
राजनीतिज्ञ पंडितों की माने तो रायगढ़ लोकसभा सदस्य गोमती साय का कद जशपुर को रेल लाइन से जोड़ने हेतु की जा रही पहल से जिस हिसाब से दिल्ली में बढ़ा है जिससे उनकी कार्यशैली और आक्रमकता से केंद्रीय नेतृत्व भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहा है ।और इसी कारण यह चर्चा शुरू हो चुकी है कि सम्भवतः आने वाले चुनाव में भाजपा केंद्रीय नेतृत्व अपनी चुनावी रणनीति में व्यापक बदलाव करते हुए प्रदेश में तेज तर्रार आदिवासी महिला को मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट कर चुनावी बिगुल फूंक सकता है और यदि सरगुजा बस्तर संभाग में पार्टी की नजर किसी नेता पर टिक सकती है तो वह गोमती साय हो सकती है क्योंकि केंद्रीय नेतृत्व भले ही उन्हें इस बार लोकसभा की टिकट के लायक न मान रहा हो किन्तु पिछले कुछ वर्षों से प्रदेश में जिस प्रकार से गोमती साय ने आक्रमक राजनीति का बिगुल छेड़ी है सम्भवतः केंद्रीय नेतृत्व उससे काफी प्रभावित है और अपनी रणनीति बदलने को मजबूर हो गया है ।हालाकिं वरिष्ठ आदिवासी नेता नन्दकुमार साय के कांग्रेस ज्वाइन करने से भाजपा उसे अपना नुकसान के रूप में आकलन नहीं कर रही है फिर भी प्रदेश में आदिवासी वोटरों को साधने पार्टी में गम्भीर मंथन चल रहा है और उस मंथन के नवनीत के रूप में पार्टी यह निर्णय कर सकती है।
यदि पार्टी इस रणनीति का क्रियान्वयन करती है तो कुछ वरिष्ट आदिवासी नेताओ को गम्भीर नुकसान झेलना पड़ सकता है उसमें से एक पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवम सांसद विष्णु साय हो सकते हैं।क्योंकि सबसे पहले गोमती साय ने विष्णु साय से सांसद के सीट छीना और अब जब श्री साय विधानसभा की तैयारी में जुटे हैं तब पार्टी के इस रणनीति के तहत जशपुर के तीन सीटों में से किसी एक सीट से गोमती साय को चुनाव लड़वाया जा सकता है ।लेकिन चुनावी रणनीति में माहिर गोमती साय ऐसी रणनीति बना रही हैं कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे ।और इसलिए विष्णु साय को किनारे करने हेतु गोमती साय स्वयं तो अपने लिए सुरक्षित सीट कुनकुरी का चयन कर सकती हैं और पथलगांव से विष्णु साय के साले सालिक साय की दावेदारी पेश कर सकती है।यदि ऐसा हुआ तो परिवार वाद का दुष्प्रभाव विष्णु साय को झेलना पड़ सकता है।
ऐसे भी गोमती साय स्वयं को भी बस्तर सरगुजा के वोटरों को साधने में सबसे योग्य उम्मीदवार मानती हैं ।
बहरहाल जो भी हो चुनाव के पूर्व ऐसी चर्चाएं आम होती हैं लेकिन इन चर्चाओं पर पार्टी की नजर हमेशा रहती है ।इसलिए नेताओं का मानना है कि राजनीति में बने रहने के लिए चर्चा पर्चा और खर्चा होते रहना चाहिए ।

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