जशपुर/सन्ना(राकेश गुप्ता की खास रिपोर्ट):- जिले में रेड जोन की स्थिति,गहराते जल संकट को देखते हुए पर्यावरण मित्र मंडल जशपुर एवं वन विभाग ने नदियों के उद्गम स्थलों के सरंक्षण की दिशा में जॉइन्ट ऑपरेशन शुरू किया है ,इस क्रम में रविवार को जशपुर वन मण्डल के डीएफओ जितेंद्र उपाध्याय रानी झूला नामक देवी स्थल ईब एवं राजपुरी नदी के उद्गम स्थलों का जायजा लेने पहुंचे ,इस दौरान उनके साथ पर्यावरण मित्र मंडल जशपुर से सोशल एक्टिविस्ट एस पी यादव, अरुण शर्मा एवं राकेश गुप्ता सहित स्थानीय वन अमला मौजूद था।डीएफओ ने उद्गम स्थलों का सूक्ष्म अवलोकन करते हुए स्थानीय वन अमले को तत्काल सफाई एवं जीर्णोद्धार सहित नदियों के उद्गम स्थलों पर नदियों के उद्गम से जुड़ी जानकारियों के डिसप्ले बोर्ड लगाने के निर्देश दिए एवं एक सप्ताह के अंदर प्रारंभिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा ,उन्होंने मौके पर मौजूद ग्रामीणों को अतिदोहन न करने समझाईस दी ,उन्होंने कहा कि नदियों पर लाखों लोगों की आजीविका आश्रित है ,इन स्थलों को पर्यटन एवं धार्मिक स्थलों के रूप में विकसित करने के लिए योजनाबद्ध तरीके से कार्य शुरू की जाएगी ,जिसमें आम समुदाय की भी सहभागिता आवश्यक है ।
*ईब एवं राजपुरी नदी के उद्गम का जलस्तर घटा ,लगातार हो रहा अतिदोहन*
पर्यावरणविद एस पी यादव ने बताया कि ईब जशपुर जिले की जीवन रेखा मानी जाती है, लगातार अतिदोहन एवं मानवीय उपेक्षा के कारण ईब एवं राजपुरी नदी के उद्गम स्थलों का जलस्तर काफी घट चुका है, उन्होंने बताया कि मई 2021 में उनकी टीम ने उद्गम स्थलों का अवलोकन कर वहाँ सफ़ाई एवं सुरक्षा के लिए ग्रामीणों को जागरूक किया था एवं साथ ही उद्गम स्थलों की सफ़ाई भी की थी, तब से अब तक कोई अपेक्षित सुधार नहीं हो पाया है ,स्थानीय ग्रामीणों को इस बात की जानकारी तक नहीं है कि ये नदियां आगे चलकर बड़ा रूप लेती है ,उद्गम स्थलों से लेकर बहाव क्षेत्रों पर कब्जा के कारण पानी का प्रवाह बाधित हो रहा है एवं इन नदियों के उद्गम स्थलों पर अतिक्रमण के कारण इनके अस्तित्व पर खतरा बढ़ गया है ,उद्गम स्थलों पर कब्जा कर इनके प्राकृतिक स्वरूप से छेड़छाड़ की गई है , यदि लोग स्वेच्छा से अतिक्रमण छोड़ते हैं तो निचले इलाकों में पानी आएगा एवं साथ ही लोगों को जलापूर्ति होगी ।
वहीं अगर गांव के बुजुर्गों की माने तो नदियों का उद्गम उसी स्थान से शुरू होता है जहां दैवीय शक्ति होती है।ऐसे ही ईब नदी का उद्गम स्थल को पूर्वजों के द्वारा माता रानी झूला का नाम दिया गया है।वहीं गांव के बुजुर्गों ने यहां तक कहा की नदियों के उद्गम स्थल को रोकना या बंद करने से गांव की देवी नाराज हो जाती है और गांव में अकाल जैसे प्राकृतिक आपदा का भी सामना करना पड़ता है।वहीं ग्रामीणों की मान्यता है कि रानी झूला ऐसा स्थान है जहाँ अपनी मन्नत मांगने से मन्नते भी पूरी हो जाती है।बहरहाल इसके संरक्षण के लिए जब वहां वन विभाग के खुद डीएफओ पहुंचे तो उन्होंने तो उद्गम में बने मंदिर को ग्रामीणों का सहयोग लेते हुए जीर्णोद्धार करने के भी निर्देश दिए हैं।
