जशपुरनगर । (सोनू जायसवाल) गुरुवार को जिले भर में होलिका दहन का त्यौहार मनाया जाएगा। मध्य रात्रि लगभग 1 बजे शुभ मुहूर्त में होलिका दहन किया जाएगा । जिले भर में 15 सौ से अधिक स्थानों पर होलिका दहन किया जाएगा। जिले के सभी थानों के द्वारा थाना क्षेत्र के अंदर होलिका दहन स्थलों का भी चिन्हांकन किया गया है । जिला मुख्यालय में रियासतकालीन परंपरा का निर्वहन करते हुए होलिका दहन किया जाएगा। होलिका दहन के बाद भगवान बाला जी को झूले में स्थापित किया जाएगा और पहला रंग भगवान बालाजी को चढ़ा कर होली की शुरूआत किए जाने की परंपरा है । मान्यता है कि जशपुर के राजा भगवान बालाजी है । भारतीय सांस्कृतिक परंपरा में होली सबसे अधिक प्रचलित और वातावरण निर्मित करने वाला त्योहार है । गुरुवार को होली के त्यौहार लेकर जिलेवासियों में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है । होलिका दहन के बाद से ही रंगों के त्योहार में लोग डूब जाएंगे । परंपरागत रूप से होली की तैयारी में बच्चे , युवा और बुजूर्ग सभी ने खूब तैयारी कर रखी है । हर साल की तरह इस साल भी होली में लोग खूब मस्ती करेंगे । कहीं सप्ताह भर से तो कहीं पूरे एक माह से होली के लिए तैयारियां की जा रही थी और इंतजार खत्म भी हो गया । इस होली को यादगार बनाने के लिए लोगों ने अपने अपने ढंग से योजनाएं बना रखी है , जिसमें सबसे अधिक बच्चों में उत्साह देखा जा रहा है । रियासतकालीन परंपरा में आज भी सौ वर्ष पूर्व से प्रारंभ की परंपरागत रीति के साथ होली का त्योहार मनाया जाता है । होली के अवसर पर यहां भगवान बाला जी को मंदिर से सम्मान के साथ मंदिर प्रांगण में लाकर विशेष धातू से बने झूले में स्थापित किया जाता है । होलिका दहन के तुरंत बाद भगवान बालाजी की स्थापना झूले में की जाती है । यहां के निवासी झूले पर भगवान बाला जी को रंग चढ़ाकर ही होली की शुरुआत करते हैं । भगवान बालाजी के बिना यह त्योहार अधूरा माना जाता है । जिले में वर्षों पहले राज परिवार के द्वारा ही क्षेत्र को खुशहाल और संपन बनाए रखने के लिए राज सिंहासन में भगवान बाला जी को स्थापित कर यहां के राजा के रूप में माना गया था । लोगों की मान्यता है कि यहां की प्रजा का ध्यान बाला जी भगवान स्वयं रखते हैं । यह परंपरा सौ वर्ष पहले से चली आ रही है ।वैदिक रीति से हवन पूजन के साथ राज परिवार के सदस्यों व आचार्यों के द्वारा होलिका दहन किया जाता है । होलिका दहन के समय पारंपरिक शास्त्रों की भूमिका भी अहम होती है । पं .मनोज रमाकांत मिश्र ने बताया कि विशेष रूप से होली में सेमल के पेड़ की डाली का होना अनिवार्य होता है । इस डाली को तलवार या टांगे से दहनप्रक्रिया में ही अग्नि देने वाले के द्वारा एक वार में काटने की परंपरा है । इसे ही सम्मत अर्थात सम्वत कटना कहा जाता है इसके साथ ही प्रातः काल से हिन्दू नव वर्ष आरम्भ हो जाता है । होलिका दहन के बाद पूरे होली समारोह तक के लिए भगवान बालाजी का पट खोल दिया जाता है । होलिका दहन की रात में ही मंदिर प्रांगन में कीमती धातुओं से बने विशेष सिंहासन और झूले में बाला जी भगवान को स्थापित कर उनकी पूजा की जाती है । भगवान को श्रद्धालु रंग, गुलाल चढ़ाते हैं । भगवान को गुलाल चढ़ाने के बाद ही लोग एक दूसरे को रंग चढ़ाते हैं और गले मिलते हैं । यह प्रक्रिया सबसे पहले बड़े बुजुर्गों के द्वारा की जाती है , इसके बाद सभी वर्गों के लोग होली खेलना प्रारंभ करते हैं । होली के दिन भी यहां लगभग सौ वर्ष पहले से होली मिलन कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है । राज गद्दी के उत्तराधिकारी रणविजय सिंह देव यहां हर एक होली में दहन के समय अनिवार्य रूप से उपस्थित रहते हैं ।
