जशपुर/बगीचा:- जशपुर जिला इन दिनों राजस्व विभाग के भू-माफियाओं के कारनामे से काफी सुर्खियों में रहने लगी है।जिले में लगातार जमीन को लेकर विवाद उत्पन्न हो रहा है।वहीं अब खबर जिले के सन्ना तहसील अंतर्गत सन्ना ग्राम पंचायत से निकल कर आ रही है।जहां शासकीय भवन का निर्माण करने के लिए भूमि की कमी तो है ही जिसके कारण सन्ना के लिए स्वीकृत शासकीय भवनों को दूसरे ग्राम पंचायत में बनवा दिया जाता है। अब सन्ना निवासी मुकेश गुप्ता ने राजस्व विभाग पर काफी गम्भीर आरोप थोपते हुए कलेक्टर जशपुर को लिखित शिकायत किया है जिसमें सन्ना में शासकीय भूमि घास मद खसरा नम्बर में 1744 में बेजा कब्जाधारी काजल राय/अमल राय, ब्रजभूषण पाठक,बलवंत गुप्ता के साथ शहाबुद्दीन अहमद खान के द्वारा अवैध रूप से शासकीय भूमि में कब्जा करके मकान बनाया गया है।अतः उपरोक्त व्यक्तियों के विरुद्ध शासकीय भूमि में अवैध बेजाकब्जा हटाने हेतु वर्ष 2014-15 में तहसीलदार बगीचा के आदेश क्रमांक रा.प.क्र.-81/ अ-68/2014-15 द्वारा पारित किया गया था किंतु बताया जा रहा है कि राजनीति पहुंच और रसूखदार होने के कारण बेजाकब्जा धारियों को काफी राहत दे दी गयी।बात वहीं नही रुकी अब बताया जा रहा है कि रुपये के दम से शासकीय घास मद की भूमि का बेजाकब्जा धारियों को फर्जी रूप से शासकीय पट्टा भी बना कर थमा दिया गया है।जिसकी लिखित शिकायत सन्ना निवासी मुकेश गुप्ता के द्वारा ग्राम सभा से लेकर कलेक्टर जशपुर के जन चौपाल तक को करते हुए मामले में उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग किया गया है। मुकेश गुप्ता का कहना है कि 20 दिन बीत जाने के बाद भी अब तक फर्जी रूप से जारी फर्जी शासकीय पट्टा का जांच तक नही कराया जाना काफी सन्देह जनक है।मुकेश गुप्ता ने आगे बताया कि बेजाकब्जा धारी अमल राय का दिनांक 22/05/2020 को बेजा कब्जा का 1000 रुपये का जुर्माना रसीद काटा जाता है और लगभग 4 माह के अंदर दिनांक 29/08/2020 को ही किसान किताब(पट्टा)जारी कर दिया जाता है।वहीं अब इस मामले को लेकर अब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मिल कर शिकायत करने की हमारी तैयारी है।
गुप्त सूत्रों की प्राप्त जानकारी अनुसार हम आपको यह भी बता कि ग्राम पंचायत सन्ना में बीते एक साल के अंदर शासकीय भूमि के घास मद,बड़े झाड़ के जंगल जैसे शासकीय मद के भूमि का कई अवैध फर्जी पट्टा जारी कर दिया गया है जिसकी अगर उच्च स्तरीय जांच बैठाई जाये तो सच सबके सामने आ जायेगी।आपको यह भी बता दें कि 1980 के बाद से आबादी एवं वन भूमि को छोड़ कर अन्य मद के भूमि का शासकीय पट्टा देने हेतु शासन के द्वारा प्रतिबन्ध लगाया गया है।बड़ा सवाल यह है कि उसके बावजूद इस प्रकार का अवैधानिक कृत्य आखिर कैसे कर दिया गया…?