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*कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए, कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए। यहाँ दरख्तों के साये में धूप लगती है, चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए। न हो कमीज़ तो पाँवों से पेट ढँक लेंगे, ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिए। खुदा नहीं, न सही, आदमी का ख्वाब सही, कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिए।*

 

जशपुरनगर। शायद दुष्यंत कुमार ने जशपुर की इन्हीं सुंदर वादियों को देखकर और इसी प्राकृतिक सौंदर्य पर लग रहे ग्रहण को लेकर उपरोक्त पंक्तियां कही थी और यह पंक्तियां जशपुर के लिए इसलिए भी चरितार्थ हो रही हैं क्योंकि एकमात्र पर्यटन उद्योग की आशा लगाए बैठे जशपुर में आज से 10 वर्ष पूर्व आशा की किरण की तरह गुल्लू हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट की स्थापना की गई और जिले वासियों को यह कहकर आशान्वित किया गया कि इस उद्योग से जशपुर के प्राकृतिक सौंदर्य पर किसी भी प्रकार का कोई ग्रहण नहीं लगेगा बल्कि इस उद्योग की स्थापना से जशपुर जिले में पर्यटन की संभावना भी बढ़ेगी लेकिन 10 वर्ष बीतने के बाद भी आज स्थिति न केवल जस की तस है बल्कि बद से भी बदतर हो चुकी है ।

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गुल्लू हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट गुल्लू ग्राम में डैम की स्थापना के बाद वहां से लगभग 4 किलोमीटर दूर बेने चटकपुर में बिजली उत्पादन संयंत्र की स्थापना तो कर दिया और इसके लिए जशपुर के गुल्लू से बेने तक की पहाड़ी को छेद कर एक बड़ी सुरंग भी बना दी गई साथ ही साथ जशपुर की जीवनदायिनी ईब नदी की धारा को भी अप्राकृतिक रूप से परिवर्तित कर बिजली उत्पादन के लिए जल को सुरंग के माध्यम से उपयोग किया जाता रहा है और इसी प्राकृतिक जल से गुल्लू हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट 132 केवी के बिजली का उत्पादन कर रहा है परंतु जहां तक जिले को पर्यटन केंद्र के रूप में स्थापित करने की बात है वह जस की तस बनी हुई है एक अदद सड़क तक का भी निर्माण हाइड्रो पावर कंपनी के द्वारा प्रोजेक्ट स्थल पर नहीं किया गया है ।

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और ना ही पर्यटकों के लिए किसी प्रकार की कोई सुविधा अथवा सेड सीढ़ी आदि का निर्माण किया गया है जिले के पर्यटन क्षेत्र में काम करने वाले लोगों का कहना है कि जब गुल्लू हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट जशपुर के जल जंगल जमीन का उपयोग करके लाखों करोड़ों रुपए कमा रहा है तब उस कमाई का लाभांश जशपुर जिले को आज तक कितना दिया गया यह विचारणीय विषय है ।लोगों का कहना है कि कंपनी अपने सीएसआर मद से भी आज दिनांक तक एक भी रुपए जशपुर के पर्यटन केंद्रों के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए नहीं लगाई है और जिसके कारण जशपुर के पर्यटन उद्योग की संभावनाएं भी धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही हैं।

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