Chhattisgarh
*क्या कलेक्टर महादेव कावरे को दिव्यांग बालात्कार पीड़ित छात्राओं को न्याय दिलाने पर मिली स्थान्तरण की सजा, निर्ममतापूर्वक हुए इस ब्लाइंड क्राइम और दबे मामले में कलेक्टर की पहल पर हुआ था मूक बधिर छात्राओं के साथ अमानवीय व्यवहार का मामला उजागर, यदि कलेक्टर ने नहीं की होती तत्काल कार्यवाही तो क्या होता स्थान्तरण.?…सरकार का निर्णय सरकार के विरुद्ध……….*
Published
3 years agoon
जशपुरनगर। (व्यक्तिगत विचार लेख विश्व बंधु शर्मा)
जनता की हर एक शिकायत पर त्वरित पहल करते हुए समस्या के निराकरण के लिए जाने जाने वाले कलेक्टर महादेव कावरे का स्थानांतरण तब कर दिया गया जब जिला चिकित्सालय में 12 करोड़ के घोटाले के लिए जांच समिति के बाद घोटाला उजागर हुआ और ठीक इसके बाद दिव्यांग मूक बधिर छात्राओं के साथ अनाचार के मामले पर अपुष्ट सूचनाओं में भी कलेक्टर ने पहल करते हुए पूरे मामले को एफआईआर तक पहुंचाया।
जनता को जनार्दन कहा जाता है और कलेक्टर महादेव कावरे के हर एक गतिविधियों से जसपुर की जनता वाकिफ रही है। शिकायत करने वाला एक पिछड़ी जनजाति वर्ग का सदस्य हो या फिर शहरी क्षेत्र का आम आदमी या कोई जनप्रतिनिधि, हर किसी फरियादी की फरियाद को कलेक्टर महादेव कावरे अपने कार्यालय में सम्मान के साथ बैठा कर सुनते और उनकी समस्या का निराकरण करने के लिए पहचाने जाते रहे। फिर क्या हुआ कि सरकार को ठीक उस समय कलेक्टर महादेव कावरे को जसपुर से स्थानांतरित करना पड़ा जब उन्होंने कुछ मीडिया कर्मियों के सूचना पर तत्काल संज्ञान लेते हुए दिव्यांग केंद्र में हुए अमानवीय व्यवहार पर कार्रवाई प्रारंभ कर दी।
पूरे घटनाक्रम के संबंध में यह तथ्य जसपुर वासियों को जानना बहुत जरूरी है कि आखिर दिव्यांग केंद्र की घटना पर एफ आई आर कैसे हुआ था।
ग्राउंड जीरो से मिली जानकारी के मुताबिक 22 सितंबर की रात दिव्यांग केंद्र में अमानवीय व्यवहार दुष्कर्म और अनाचार का गंदा खेल हुआ। घटना लगभग 9:30 से 10:30, 11 के बीच घटी। 12:00 बजे रात को दिव्यांग केंद्र से जुड़े कुछ अधिकारी कर्मचारी मौके पर पहुंच गए लेकिन इनके द्वारा वरिष्ठ अधिकारियों को घटना की जानकारी नहीं दी गई ना ही थाने में एफ आई आर किया गया।
23 सितंबर की रात करीब 9:00 बजे गुमनाम व्यक्ति के द्वारा एक मीडिया कर्मी को घटना की जानकारी दी गई और यह भी बताया गया कि वह बहुत डर में है इसलिए वह सामने नहीं आना चाहता। जिसके बाद मीडिया कर्मियों ने कलेक्टर महादेव कावरे से घटना के संदर्भ में चर्चा की और सूत्र बताते हैं कि यह सूचना प्राप्त होते ही रात 11:00 बजे 23 सितंबर को ही कलेक्टर महादेव कावरे के निर्देशन में जसपुर सिटी कोतवाली में संबंधित कर्मचारियों के द्वारा शिकायत दर्ज करा दी गई। एक ओर जहां पुलिस ने मामले में जांच शुरू कर दी वही जिम्मेदार लोगों को अपने अधिकार क्षेत्र में आने वालों पर कलेक्टर महादेव कावरे ने कार्यवाही भी तत्काल शुरू कर दी।
जिसके बाद सभी मीडिया में खबरों का प्रकाशन भी प्रारंभ हो गया और घटना को लेकर मीडिया को पुख्ता आधार मिल गए। 24 सितंबर को राजीव गांधी शिक्षा मिशन के जिम्मेदार अधिकारी विनोद पैकरा ने मीडिया को बयान दिया था कि घटना नहीं हुई है बल्कि घटना को रोका गया है। लेकिन कलेक्टर महादेव कावरे ने मामले की सूक्ष्म जांच की पहल की और फिर पीड़ितों के बयान के बाद पूरे मामले का खुलासा हो गया।
कलेक्टर महादेव कावरे चाहते तो पूरे मामले को ठीक उसी तरह दबा दिया जाता जिस तरह 23 सितंबर की रात तक मामला दबा हुआ था। लेकिन कलेक्टर महादेव कावरे ने मानवीय संवेदना का परिचय देते हुए पीड़ितों को न्याय दिलाने पहल की, जिसके बाद मुख्य आरोपियों को जेल भेजा गया, वही अधीक्षक समन्वयक निलंबित हुए।
सवाल यह उठता है कि क्या कलेक्टर महादेव कावरे का स्थान्तरण इसलिए कर दिया गया क्योंकि उन्होंने दिव्यांग अनाचार पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए पहल की और मामले में एफआइआर को प्राथमिकता देते हुए निष्पक्ष जांच के लिए कदम उठाया।
सवाल यह भी उठता है कि क्या महादेव कावरे यदि जिला चिकित्सालय में 12 करोड के घोटाले जैसे मामलों में सक्रिय कदम नहीं उठाते तो क्या उनका स्थानांतरण होता। कोरोना संक्रमण काल से लेकर राजनीतिक रूप से चर्चित भ्रष्ट जशपुर जिले में राजनीतिक दबाव पर भी बेहतर समन्वय बनाकर जनहित में कार्य करना काफी चुनौतीपूर्ण रहा है जिसमें कलेक्टर महादेव कावरे की भूमिका निश्चित ही सराहनीय रही है।
यह जगजाहिर है कि जशपुर में प्रशासनिक कार्यों में राजनीतिक हस्तक्षेप पराकाष्ठा पर रही है। जहां राजनेताओं की भूमिका संदिग्ध रही है। 12 करोड़ के घोटाले में सत्ता पक्ष के किसी भी जनप्रतिनिधि ने सवाल नहीं उठाया और ना ही कार्यवाही की मांग की। विधायकों की यह चुप्पी इस बात का परिचायक भी है कि वे जनहित के कार्यों में कितना हृदय से जुड़े हैं। मैं यह दावा नहीं करता कि 12 करोड़ के घोटाले में जनप्रतिनिधियों का भी निश्चित तौर पर हिस्सा रहा होगा लेकिन जब इस समस्या पर इस भ्रष्टाचार को लेकर खुलासा हुआ तो विधायकों की चुप्पी जरूर कुछ कहती है जिसे जनता समझती है क्योंकि जनता को जनार्दन कहा जाता है।
अधिकारियों का स्थानांतरण एक सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया है लेकिन जिस परिस्थिति में जसपुर जिले में दो कलेक्टरों के स्थानांतरण हुए उससे सरकार की कार्यप्रणाली पर बड़े सवाल खड़े हुए हैं।