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*नहाए-खाए के साथ शुरु हुआ छठ महापर्व, सूर्य उपासना का सबसे पहला उल्लेख मिलता है ऋग्वेद में, जानिए स्वास्थ्य का कौन सा गूढ़ रहस्य छिपा में इस महापर्व में,वीडियो में देखिए क्या होता है नहाए-खाए में…*

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जशपुरनगर। नहाए-खाए रस्म के साथ ही शुक्रवार से भगवान सूर्य देव की उपासना का महापर्व छठ प्रारंभ हो गया है। इस रस्म के साथ ही व्रती महिलाएं तीन दिन का कठिन निर्जला व्रत धारण करती हैं। सूर्य उपासना का पर्व छठ का आध्यात्मिक के साथ ही वैज्ञानिक महत्व भी है। सूर्य की उपासना के इस पर्व का सबसे पहले उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। ऐसी कई कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें सूर्य की महिमा और छठ पर्व को करने के विधान बताए गए हैं। विष्णुपुराण, भगवतपुराण, ब्रह्मपुराण में भी छठ पर्व का उल्लेख मिलता ही है। इस बारे में पं. मनोज रमाकांत मिश्र ने बताया कि वैसे तो छठ का पुराणों में बहुत उल्लेख मिलता है। इसका उल्लेख ऋगवेद में भी है। इसे लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं रामायण काल से लेकर महाभारत काल तक इसका उल्लेख मिलता है। उन्होंने बताया कि एक कथा के अनुसार ऋषि अर्क को स्वयं आकाशवाणी से इस महान पर्व को करने की प्रेरणा मिली थी। वे कुष्ठ रोग से बुरी तरह से पीड़ित थे, पीड़ा के कारण वे अपना शरीर तक त्यागना चाहते थे, पर तभी आकाशवाणी हुई और उन्हें इस पर्व की महिमा का ज्ञान मिला। जिसके बाद ऋषि अर्क ने पूरी श्रद्धा और भक्ति से इस व्रत को किया और भगवान सूर्य की अनुकंपा से वे पूरी तरह ठीक हो गए।

*अल्ट्रा वायलेट किरणों से होती है रक्षा*

छठ महापर्व में भगवान सूर्य को अर्ध्य देने पर सूर्य की अल्ट्रा वायलेट किरणों से शरीर की रक्षा होती है। अस्ताचल और उदयाचल सूर्य को नमन करने से स्वास्थ्य पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है। जो इस पर्व के वैज्ञानिक महत्व को दर्शाता है।
सूर्य अराधना के इस महापर्व का पौराणिक महत्व के साथ-साथ लोकरीति व वैज्ञानिक दृष्टि से भी काफी महत्व है। आधुनिक युग में इस पर्व ने ग्राम्य जीवन और लोक परंपराओं को जीवित रखने में योगदान दिया है। छठ पर्व की परंपरा में बहुत ही वैज्ञानिक और ज्योतिषीय महत्व भी छिपा हुआ है। ज्योतिष के जानकार पं. नवीन पाठक के अनुसार कार्तिक शुक्ल माह की षष्ठी तिथि एक विशेष खगोलीय अवसर है। इस समय धरती के दक्षिणी गोलार्ध में सूर्य रहता है और दक्षिणायन के सूर्य की अल्ट्रावॉयलट किरणें धरती पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाती हैं। क्योंकि इस दौरान सूर्य अपनी नीच राशि तुला में होता है। इन दूषित किरणों का सीधा प्रभाव जनसाधारण की आंखों, पेट, स्किन आदि पर पड़ता है। इस पर्व के पालन से सूर्य प्रकाश की इन पराबैंगनी किरणों से जन-साधारण को हानि न पहुंचे, इस अभिप्राय से सूर्य पूजा का गूढ़ रहस्य छिपा हुआ है।

*आरोग्य प्राप्ति के लिए सूर्यदेव की पूजा*

पं. मनोज रमाकांत मिश्र ने बताया कि मोक्ष की प्राप्ति के लिए लोग भगवान विष्णु की उपासना करते हैं। पर आरोग्य की प्राप्ति के लिए भगवान सूर्य की उपासना की जाती है। उन्होंने बताया कि भगवान राम जब लंका विजय कर अयोध्या लौटे थे, तब उन्होंने कार्तिक मास की षष्ठी को सूर्य की अराधना की थी। महाभारत काल में भी कुंती ने सूर्य की उपासना का यह पर्व किया था। पांडवों के वनवास के दौरान उनकी मंगलकामना के लिए द्रौपदी ने कार्तिक मास के षष्ठी को सूर्य की उपासना का व्रत रखा था। एक और कथा के अनुसार भगवान कृष्ण के पुत्र शांब कुष्ठ रोग से पीड़ित हो गए थे तब उन्होंने पूरी निष्ठा के साथ भगवान सूर्य की तीन दिन तक उपासना की थी। पुराणों में वर्णित एक और कथा के अनुसार राजा प्रियव्रत ने भी सूर्य की उपासना की थी।

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