Jashpur
*धूमधाम से मनाया गया परमपूज्य अघोरेश्वर भगवान राम जयंती…सर्वेश्वरी समुह के सैकड़ों श्रद्धालु रहे उपस्थित… जानिए कौन हैं अघोरेश्वर भगवान राम (औघड़ बाबा) ?………….*
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2 years agoon
जशपुरनगर। शनिवार को सर्वेश्वरी समूह के संस्थापक अघोरेश्वर भगवान राम की जयंती श्रद्वालुओं ने उत्साहपूर्वक मनाया। जिले के बगीचा में स्थित आश्रम में आयोजित विशेष धार्मिक आयोजन में सुबह से बड़ी संख्या में श्रद्वालु जुटने लगे थे। श्रद्वालुओं ने आश्रम में अघोरेश्वर भगवान राम की पूजा अर्चना कर,आशिर्वाद प्राप्त किया। इस पुनित अवसर पर सफल योनी के पाठ में श्रद्वालु शामिल हुए। जानकारी के लिए बता दें कि त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम राम को महर्षि विश्वामित्र ने पतित पावनी गंगा और सोनभद्र से घिरी हुई पवित्र धरती पर शिक्षा दी थी। इसी पवित्र भूमि पर गुण्डी ग्राम, सूर्यवंशियों के कुल में स्वनामधन्य स्व बाबू बैजनाथ सिंह एवं माता श्रीमती लखराजी देवी के पुत्र के रूप मे परम् पूज्य अघोरेश्वर का अवतरण विक्रम संवत् 1994 (सन् 1937) की भाद्रपद शुक्ल सप्तमी, रविवार को हुआ । आपके पितामह स्व०बाबू ह्रदय प्रसाद सिंह थे, माता जी के संन्यास ले लेने पर उनका नाम महा मैत्रायिणी योगिनी पड़ा । बालक के अलौकिक क्रिया-कलापों को देखकर परिजनों ने आपका नाम भगवान रखा, यही भगवान आगे चलकर औघड़ भगवान राम हुए । अघोरेश्वर भगवान राम जी के पूर्वजों का सम्बन्ध राजवंशों से रहा है, भारत के पश्चिमी भाग में स्थित लोहागढ़ से सैकड़ो वर्ष पहले आपके पूर्वज भोजपुर(बिहार) में आ बसे। राज्यों एवं जमींदारियों के उन्मूलन के बाद भी आपका परिवार सम्पन्न किसानों का है, आपका गोत्र-भारद्वाज, शाखा-वाजसनेयी, सूत्र-पास्करगृहसूत्र, वेद-यजुर्वेद तथा कुलदेवी-चण्डी हैं ।बाल्यावस्था से ही आपमें अलौकिक प्रतिभाओं का आभास मिलता था, सात वर्ष की अल्प आयु में ही बालक भगवान सांसारिकता से विरक्त हो गए । सोनभद्र तथा गंगा के तटों के सामिप्य के कारण संतों का सत्संग आपको शैशव काल से ही प्राप्त होता रहा । गंगा और सोन के तटों पर, विंध्याचल के वनों और पर्वतों में आप साधना-रत रहे, विचारते रहे । काशी, गया, जगन्नाथपुरी तथा विंध्याचल के तीर्थों में, गंगा की कछारों पर स्थित श्मशानों में आप साधना-रत रहे, काशी स्थित कीनाराम स्थल में आपने अघोर-दीक्षा ली । पूर्ण रूप से, मानव समाज से आपका सम्पर्क श्री सर्वेश्वरी समूह की स्थापना के समय से हुआ और आपने दलितों, उपेक्षितों एवं असहायों की सेवा का व्रत लिया । कुष्ठ सेवा आश्रम की स्थापना, बीमारों की सेवा, असहाय लड़कियों का विवाह आदि अनेक सेवा-कार्यक्रम आपके द्वारा प्रतिपादित हुए । आध्यात्मिक उपलब्धि को सामाजिक जीवन से सम्बद्ध करने के लिये आपने ३० जनवरी 1961 को बाबा भगवान राम ट्रस्ट 21 सितंबर 1961 को श्री सर्वेश्वरी समूह तथा 26 मार्च 1985 को अघोर परिषद ट्रस्ट की स्थापना की । दोनों ट्रस्ट, ट्रस्ट एक्ट तथा श्री सर्वेश्वरी समूह सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के अन्तर्गत पंजीकृत किये गये हैं, इसके अतिरिक्त आपने अनेक स्थानों पर लोक-मंगल के कार्यक्रमों के सम्पादन के लिए आश्रमों की स्थापना की अफगानिस्तान, ईरान, नेपाल, भूटान, संयुक्त राज्य अमेरिका, इटली, लेबनान, फ्रांस, स्विट्जरलैंड, मेक्सिको तथा अन्य कई देशों में, भक्तों के आग्रह पर तथा सेवा-व्रत के आपने अनुष्ठान के सन्देश के निर्मित भ्रमण किया। औघड़-अघोरेश्वरों की परम्परा को समाज के साथ आपने पहली बार सम्बंधित किया। आप पुरानी लकीर पीटने के बजाय देश और काल की आवश्यकताओं के अनुसार व्यवस्था निर्धारित करने पर बल देते थे । जानकारों के अनुसार किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए आप अवतरित हुए, अध्यात्म जगत की इस विभूति को विश्वास और उनकी कृपा से ही जाना जा सकता है । आपने 29 नवंबर,1992 को महानिर्वाण प्राप्त किया, आपके शरीर को गंगा तट पर अग्नि को समर्पित किया गया जहाँ एक विशाल समाधि निर्मित की गयी है । यह पवित्र स्थान अघोरेश्वर भगवान राम महाविभूति स्थलष् नाम से जाना जाता है । यह श्री सर्वेश्वरी समूह के मुख्य कार्यालय से मात्र एक किमी० की दूरी पर है आपके श्रीमुख से निकले अन्तिम शब्द हैं
रमता है सो कौन, घट-घट में विराजत है
रमता है सो कौन बता दे कोई