Jashpur
*jashpur News:-युवा वर्ग ही नहीं अपितु जेल में निरुद्ध कैदियों के जीवन में भी आती हैं सुदर्शन क्रिया से परिवर्तन,श्री श्री रविशंकर आर्ट ऑफ लिविंग संस्था का छः दिवसीय हैप्पीनेस प्रोग्राम कोतबा मे आयोजित..।*
Published
9 months agoon

जशपुरनगर,कोतबा:- नगर के सेठ गोविंद राम धर्मशाला में भारत सरकार से पद्घम विभूषण पुरुस्कार से सम्मानित पूज्य गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी के आर्ट ऑफ लिविंग संस्था के शिक्षक राजेंद्र देवांगन और युवाचार्य निर्मला साहू द्वारा हैप्पीनेस कोर्स का आयोजन किया जा रहा है जिसके माध्यम से लोगों को अच्छे स्वास्थ् और तनाव मुक्त मन के लिए विश्व विख्यात सुदर्शन क्रिया ,योग व मेडिटेशन सिखाया जा रहा है. और इससे नगर कोतबा के बड़ी संख्या में लोग शामिल होकर लाभान्वित हो रहें है।
आर्ट ऑफ लिविंग संस्था के जिला संयोजक पुष्पांजली सतपथी जी ने बताया की संस्था भारत देश के अलावा 185 अन्य देशों मे संचालित हो रही है।जिसमें हर एक आयु वर्ग के लिए अलग अलग शिविर चलाये जा रहे है। 18 से 40 आयु वर्ग के युवाओं के लिए YLTP किया जा रहा है। इससे युवाओं को सही दिशा मिल रही है और यहाँ तक की जेल के कैदीयों के जीवन मे कैसे परिवर्तन हो इसके लिए भी जेलों मे भी इनका शिविर आयोजित की जाती है।
संयोजक पुष्पांजली सतपथी जी ने बताया कि श्री श्री रविशंकर का जन्म भारत के तमिलनाडु राज्य में 13 मई 1956 को हुआ। उनके पिता का नाम वेंकट रत्नम् था जो भाषाकोविद् थे। उनकी माता श्रीमती विशालाक्षी एक सुशील महिला थीं।
श्री रविशंकर आदि शंकराचार्य से प्रेरणा लेते हुए उनके पिता ने उनका नाम रखा ‘रविशंकर’ था।
रविशंकर शुरू से ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। मात्र चार साल की उम्र में वे श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों का पाठ कर लेते थे। बचपन में ही उन्होंने ध्यान करना शुरू कर दिया था। उनके शिष्य बताते हैं कि फीजिक्स में अग्रिम डिग्री उन्होंने 17 वर्ष की आयु में ही ले ली थी।
रविशंकर पहले महर्षि महेश योगी के शिष्य थे। उनके पिता ने उन्हें महेश योगी को सौंप दिया था। अपनी विद्वता के कारण रविशंकर महेश योगी के प्रिय शिष्य बन गये। उन्होंने अपने नाम रविशंकर के आगे ‘श्री श्री’ जोड़ लिया जब प्रख्यात सितार वादक रवि शंकर ने उन पर आरोप लगाया कि वे उनके नाम की कीर्ति का इस्तेमाल कर रहे हैं।
रविशंकर लोगों को सुदर्शन क्रिया सशुल्क सिखाते हैं। इसके बारे में वो कहते थे कि 1982 में दस दिवसीय मौन के दौरान कर्नाटक के भद्रा नदी के तीरे लयबद्ध सांस लेने की क्रिया एक कविता या एक प्रेरणा की तरह उनके जेहन में उत्पन्न हुई। उन्होंने इसे सीखा और दूसरों को सिखाना शुरू किया।
1982 में श्री श्री रविशंकर ने आर्ट ऑफ लिविंग फाउण्डेशन की स्थापना की। यह शिक्षा और मानवता के प्रचार प्रसार के लिए सशुल्क कार्य करती है।
1997 में ‘इंटरनेशनल एसोसियेशन फार ह्यूमन वैल्यू’ की स्थापना की जिसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर उन मूल्यों को फैलाना है जो लोगों को आपस में जोड़ती है।
श्री श्री रविशंकर की सेवाओं को देखते हुये उन्हें कई पुरस्कार भी प्राप्त है।
जिसमें भारत सरकार ने पदमविभूषण से वर्ष 2016 में नवाजा था।

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