Jashpur
*स्वामी आत्मानंद स्कूल कोतबा में मनाया गया गुरुपूर्णिमा कार्यक्रम में गुर शिष्य की संस्कृति में डाला गया प्रकाश*
Published
7 months agoon

कोतबा:- शासन के आदेशानुसार श्री गुरुपूर्णिमा के शुभ अवसर पर स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम विद्यालय कोतबा में धूमधाम से गुरुओं का पर्व मनाया गया इस अवसर पर व्याख्याता दुर्योधन यादव, मनीष शर्मा, शिक्षक विशाल साहू, तृप्ति शर्मा , हेमलता नायक, माधुरी साहू, शालिनी टोप्पो डेविड धहनेश्वर का तिलक लगा कर माल्यार्पण कर सभी छात्र छात्राओ ने गुरुजनों का पूजन वन्दन किया।
दिनांक 22 जुलाई 2024 को स्कूल प्रांगण में गुरु पूर्णिमा कार्यक्रम का आयोजन किया गया। सर्वप्रथम प्रार्थना सभा पर प्रार्थना के पश्चात शिक्षकों द्वारा गुरु पूर्णिमा के महत्व एवं पारंपरिक गुरु शिष्य संस्कृति के बारे में बतलाया गया की गुरु पूर्णिमा का पर्व महर्षि वेदव्यास जी के जन्म दिवस के अवसर पर मनाया जाता है इस दिन घर के बड़े,बुजुर्ग, गुरु और जिनसे भी आपने अपने जीवन में कुछ ना कुछ सीखा है उसके प्रति सम्मान अर्पित कर प्रणाम करना चाहिए, उसके पश्चात वीणा वादिनी मां सरस्वती की छायाचित्र पर पुष्प अर्पित कर दीप प्रज्वलित किया गया तत्पश्चात गुरुओं का स्वागत एवं सम्मान तिलक,अक्षत लगाकर एवं पुष्प गुच्छ प्रदायकर किया गया | शिक्षकों एवं विद्यार्थियों ने गुरु पूर्णिमा के महत्व के बारे में अपने-अपने विचार प्रस्तुत किये|
कार्यक्रम के दौरान व्याख्याता दुर्योधन यादव ने गुरु के महत्व को हमारे सभी संतो, ऋषियों एवं महान विभूतियों ने उच्च स्थान दिया है।संस्कृत में ‘गु’ का अर्थ होता है अंधकार (अज्ञान)एवं ‘रु’ का अर्थ होता है प्रकाश(ज्ञान)। गुरु हमें अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाते हैं।हमारे जीवन के प्रथम गुरु हमारे माता-पिता होते हैं। जो हमारा पालन-पोषण करते हैं, सांसारिक दुनिया में हमें प्रथम बार बोलना, चलना तथा शुरुवाती आवश्यकताओं को सिखाते हैं। अतः माता-पिता का स्थान सर्वोपरी है। जीवन का विकास सुचारू रूप से सतत् चलता रहे उसके लिये हमें गुरु की आवश्यकता होती है। भावी जीवन का निर्माण गुरू द्वारा ही होता है। वही शिक्षक मनीष शर्मा ने बताया कि मानव मन में व्याप्त बुराई रूपी विष को दूर करने में गुरु का विषेश योगदान है। गुरू शिष्य का संबन्ध सेतु के समान होता है। गुरू की कृपा से शिष्य के लक्ष्य का मार्ग आसान होता है।स्वामी विवेकानंद जी को बचपन से परमात्मा को पाने की चाह थी। उनकी ये इच्छा तभी पूरी हो सकी जब उनको गुरू परमहंस का आशीर्वाद मिला। गुरू की कृपा से ही आत्म साक्षात्कार हो सका।छत्रपति शिवाजी पर अपने गुरू समर्थ गुरू रामदास का प्रभाव हमेशा रहा।गुरू द्वारा कहा एक शब्द या उनकी छवि मानव की कायापलट सकती है। कबीर दास जी का अपने गुरू के प्रति जो समर्पण था उसको स्पष्ट करना आवश्यक है क्योंकि गुरू के महत्व को सबसे ज्यादा कबीर दास जी के दोहों में देखा जा सकता है।एक बार रामानंद जी गंगा स्नान को जा रहे थे, सीढी उतरते समय उनका पैर कबीर दास जी के शरीर पर पढ़ गया। रामानंद जी के मुख से ‘राम-राम’ शब्द निकल पङा। उसी शब्द को कबीर दास जी ने दीक्षा मंत्र मान लिया और रामानंद जी को अपने गुरू के रूप में स्वीकार कर लिया। कबीर दास जी के शब्दों में— ‘हम कासी में प्रकट हुए, रामानंद चेताए’। ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि जीवन में गुरू के महत्व का वर्णन कबीर दास जी ने अपने दोहों में पूरी आत्मियता से किया है।
गुरू गोविन्द दोऊ खङे का के लागु पाँव,
बलिहारी गुरू आपने गोविन्द दियो बताय।
वही शिक्षिका तृप्ति शर्मा ने छात्रछात्राओं को बताया कि गुरू का स्थान ईश्वर से भी श्रेष्ठ है। हमारे सभ्य सामाजिक जीवन का आधार स्तंभ गुरू हैं। कई ऐसे गुरू हुए हैं, जिन्होने अपने शिष्य को इस तरह शिक्षित किया कि उनके शिष्यों ने राष्ट्र की धारा को ही बदल दिया।आचार्य चाणक्य ऐसी महान विभूती थे, जिन्होंने अपनी विद्वत्ता और क्षमताओं के बल पर भारतीय इतिहास की धारा को बदल दिया। गुरू चाणक्य कुशल राजनितिज्ञ एवं प्रकांड अर्थशास्त्री के रूप में विश्व विख्यात हैं। उन्होने अपने वीर शिष्य चन्द्रगुप्त मौर्य को शासक पद पर सिहांसनारूढ करके अपनी जिस विलक्षंण प्रतिभा का परिचय दिया उससे समस्त विश्व परिचित है। शिक्षक विशाल साहू ने बताया कि गुरु हमारे अंतर मन को आहत किये बिना हमें सभ्य जीवन जीने योग्य बनाते हैं। दुनिया को देखने का नज़रिया गुरू की कृपा से मिलता है। पुरातन काल से चली आ रही गुरु महिमा को शब्दों में लिखा ही नही जा सकता। संत कबीर भी कहते हैं कि –
सब धरती कागज करू, लेखनी सब वनराज।
सात समुंद्र की मसि करु, गुरु गुंण लिखा न जाए।।
गुरु पूर्णिमा के पर्व पर अपने गुरु को सिर्फ याद करने का प्रयास है। गुरू की महिमा बताना तो सूरज को दीपक दिखाने के समान है। कबीर दास जी ने निम्न दोहे से गुरु की महिमा बताई है।
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।।
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