Jashpur
*कमाई कम या काम की है दिक्कत जो नागलोक से हर साल महानगरों में पलायन कर जाते हैं सैंकड़ो मजदूर आखिर जिम्मेदार कौन और क्या है वजह ….? क्लिक कर पढिए पूरी खबर………*
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2 years agoon
मुकेश नायक की रिपोर्ट
सिंगीबहार :- फरसाबहार ब्लाॅक के ग्राम पंचायत – कोहपानी,सिंगीबहार,केरसई,साजबहार,उपरकछार,लठबोरा,साजबहार,जबला,बाम्हनमारा,जामबहार में मनरेगा के तहत काम ज्यादा नहीं खुल रहे हैं। ऐसे में गांव वाले परिवार समेत घर में ताला जड़कर दिल्ली मुम्बई सहित कई महानगर पड़ोसी राज्य आसपास पलायन कर रहे हैं। इनमें ज्यादातर युवा वर्ग के हैं। भाजपा नेता गोपाल कश्यप ने कहा कि वर्षभर से मनरेगा के तहत काम नहीं खुल रहा है। आस पास गांव के लगभग सैंकड़ो युवा मजदूर पलायन कर चुके ,कर रहे हैं। यह सिलसिला अभी भी जारी है। कोई ईंट निर्माण के लिए पड़ोसी राज्य जा रहे, तो कोई अन्य जिलों की फैक्ट्रियों में काम कर रहे हैं। गांव के बुजुर्ग रामरूप राम ने कहा कि पेट की भूख सरकार के चावल से दूर हो जा रही है लेकिन परिवार पालने के लिए काम चाहिए। उन्होंने कहा कि गांव में लोगों को काम नहीं मिल रहा, इसलिए मजबूरी में पलायन करना पड़ रहा है। 4-6 महीने में या त्यौहार के समय ग्रामीण वापस आते हैं और कुछ दिन रूकने के बाद फिर वापस चले जाते हैं। पूर्व में गांव में पर्याप्त रोजगार गारंटी के काम खुलते थे। पर अभी के स्थिति में सभी कार्य ठप पड़े हैं । और इस तरह प्रदेश सरकार के सारे वादे जमीनी स्तर में खोखले नजर आ रहे हैं । सूत्रों से मिली जानकारी अनुसार कल एवं परसो रात में फेक्ट्री के संचालक द्वारा महानगर से स्पेशल 3 सर्विस बस आये थे जिसमें 180 लगभग मजदूर महानगर पलायन किये हैं । मजदूरों में पलायन की प्रवित्ति सालों से चली आ रही है. मजदूर देश के कई उन्नत राज्यो में पलायन करते हैं. ये मजदूर सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश, दिल्ली, जम्मू कश्मीर आंध्र प्रदेश,तमिलनाडु, तेलंगाना और गुजरात मे रोजी रोजगार की तलाश में जाते हैं. मजदूरों की अगर बात करें तो उनका इस मामले में कहना है कि छत्तीसगढ़ में उन्हें बहुत कम रोजी मिलती है. वे यहा पूरा दिन काम करते हैं तो उन्हें मात्र ढाई सौ से तीन सौ और अधिक से अधिक 4 सौ और साढ़े चार सौ ही मिलते हैं, जबकि अन्य प्रदशों में उन्हें 5 सौ से 7 सौ रुपए मिलते हैं. मजदूर अक्टूबर-नवंबर से पलायन शुरू करते हैं और जून-जुलाई तक वापस अपने घर की ओर लौटने लगते हैं. मजदूरों ने बताया कि उन्हें यहां काम ठीक तरीके से नहीं मिलता इसलिए बाहर चले जाते हैं.
सरकारी आकड़ों में मजदूरों का पलायन बहुत कम
जिले की अगर बात करें तो सरकारी आंकड़ों में पलायन करने वालों की संख्या बहुत ही कम है. उसका कारण यह है कि शासकीय विभाग यानी श्रम विभाग पलायन करने वाले उन मजदूरों का लेखा-जोखा रखता है जो लाइसेंसी ठेकेदारों के सहयोग से अन्य प्रदेशों में काम करने पलायन करते हैं. विभाग इन्हीं आंकड़ों के दम पर दावा करता है. जबकि निजी तौर पर पलायन करने वाले और गैर लाइसेंसी ठेकेदार चोरी-छिपे हजारों मजदूरों को अन्य प्रदेशों में लेकर जाते हैं और उन्हें वहां की फैक्ट्री, ईंट भट्ठा के अलावा बड़े ठेकेदारों को सौंपते हैं. विभाग उन्हीं आंकड़ों को सही मानता है, जिनमें लाइसेंसी ठेकेदार मजदूरों को लेकर जाते हैं. जबकि यह आंकड़े वास्तव में कहीं ज्यादा हैं.