Chhattisgarh
*हरतालिका तीज व्रत पर अनूठी पहल, आर्थिक रूप से कमज़ोर व असहाय सुहागन महिलाओं को सुहाग प्रतीक चिन्ह के रूप वस्त्र, फल, मिठाई एवँ श्रृंगार का सामान भेंट, समग्र ब्राह्मण मातृशक्ति परिषद् ने दिया तीजा चिन्हारी*
Published
4 years agoon
रायगढ़। अग्रशील संस्था समग्र ब्राह्मण मातृशक्ति परिषद् ज़िला इकाई रायगढ़ के द्वारा अखंड सौभाग्य प्रदान करने वाले हरतालिका तीज व्रत के पावन अवसर पर आर्थिक रूप से कमज़ोर व असहाय सुहागन महिलाओं को सुहाग प्रतीक चिन्ह के रूप वस्त्र, फल, मिठाई एवँ श्रृंगार का सामान भेंट कर समस्त सुहागन महिलाओं के अखंड सौभाग्य बने रहने की मंगल कामना किए ।
हरतालिका तीज जिसे छत्तीसगढ़ अंचल में तीजा के नाम से जाना जाता है । यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि को पूरे पारंपरिक रूप से मनाया जाता है । मान्यता है कि, पौराणिक काल में जगत्जननी माता पार्वती जी ने आदिदेव भगवान शंकर जी को वर के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या करते हुए भाद्रपद की शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि को निर्जल, निराहार रहकर इस व्रत को किया था । तभी से सौभाग्य सूचक इस व्रत को तीज के रूप में मनाने की प्रथा चली आ रही है । इस व्रत को करने के लिए बहन-बेटियों के मायके जाने की भी परंपरा है । महिलाएँ इस व्रत को रखने से पहले सुहाग की प्रतीक मेंहंदी को अपने हाथों में रचाती हैं । जिसमें वो बड़े प्रेम से अपने पिया का नाम लिखवाती हैं । कहते हैं, मेहंदी का रंग जितना गहरा हो पत्नी उतनी अधिक पिया मनभावन होती है । तीजा की पूर्व रात्रि को करूभात खाने की भी परंपरा है । मायके आई बहन-बेटियों को परिवार वाले आदरपूर्वक अपने घरों पर करूभात जिमने का आमंत्रण देते हैं । घर-घर में छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध पकवान ठेठरी, खुरमी,गुझिया,अरसा,करी लड्डू , देहरौरी व विभिन्न प्रकार के मिष्ठान बनाए जाते हैं ।
तीजा के दिन महिलाएँ प्रातःकाल से ही निर्जल,निराहार रह कर व्रत प्रारंभ करती हैं । तत्पश्चात अपने प्रीतम की दीर्घायु की कामना करते हुए सोलह श्रृंगार करती हैं । नए-नए वस्त्राभूषण पहन कर पूजा की तैयारी करती हैं ।शुभ मुहूर्त आने पर माताएँ-बहने सामूहिक या एकाकी रूप में ही पूजा प्रारंभ करती हैं । पंडित जी के निर्देशानुसार बालू से भगवान शिव जी का लिंग बनाकर उसे पंचद्रव्य से अभिषेक कर सिंदूर, चंदन व विविध प्रकार के पुष्प,दूर्वा, आदि को अर्पित कर धूप,कपूर घी बाती से आरती उतारकर नाना प्रकार के फल,मिष्ठान आदि व्यंजन से भोग लगाकर पूजा संपन्न करती हैं एवँ भगवान शिव जी से अखंड सौभाग्यशाली रहने का वरदान माँगती हैं । जिससे उनका सुहाग अखंड बना रहे । तत्पश्चात् भजन-कीर्तन करते हुए रात्रि जागरण करती हैं व ब्रह्म मुहूर्त में ही स्नान-ध्यान व पूजापाठ करके बालूका लिंग का विसर्जन करती हैं । पश्चात् निर्जल, व्रत का पारायण करते हुए व्रत खोलती हैं। सभी माताओं बहनों का सुहाग सदा अखंड बना रहे इसके लिए नए वस्त्र व सुहाग चिन्ह का दान किया जाता है तथा स्वयं सदा सुहागन रहने का आशीर्वाद भी प्राप्त करती हैं ।
इसी कड़ी में रायगढ़ ज़िला मातृशक्ति परिषद् की बहनों ने असहाय सौभाग्यवती महिलाओं को साड़ी, फल, मिठाई व सुहागश्रृंगार का सामान दान किए । तथा अखंड सौभाग्यवती होने का आशीष पाने के साथ ही समस्त सुहागन माताओं तथा बहनों के भी अखंड सुहाग बने रहने की मंगल कामना कीं ।

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