Jashpur
*देखिये वीडियो:- धर्मनगरी कोतबा में आयोजित सार्वजनिक श्रीराम कथा के तीसरे दिन कथावाचीका पूज्य किशोरी वेदांगनी पाण्डेय ने प्रवचन में कहा, भगवान श्रीराम का जन्म एक कारण से नहीं हुआ,कई कारण रहे हैं तब भगवान ने जन्म लिया है।*
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1 year agoon

कोतबा:- धर्मनगरी कोतबा के तिलगोड़ा प्रांगण में आयोजित सार्वजनिक श्रीराम कथा के तीसरे दिन बुधवार को कथावाचीका पूज्य किशोरी वेदांगनी पाण्डेय ने प्रवचन में कहा कि भगवान श्रीराम का जन्म एक कारण से नहीं हुआ,कई कारण रहे हैं तब भगवान ने जन्म लिया है। राक्षसों का नाश तो करना ही था। भक्तों का उद्धार, संतों का संरक्षण तथा राम राज्य की कल्पना को साकार रूप देने जैसे अनेक कारण रहे हैं। तभी तो संत तुलसीदास ने लिखा है कि ‘राम जन्म के हेतु अनेका, परम विचित्र एक ते एका..’ जब-जब होई धरम की हानि। बाढ़हि असुर अधम अभिमानी। तब-तब प्रभु धरि विविध शरीरा। हरहि कृपानिधि सज्जन पीरा।’, ‘भये प्रकट कृपाला दीन-दयाला कौशल्या हितकारी’ रामचरित मानस की एक के बाद एक चौपाइयों की व्याख्या करते हुए पूज्य किशोरी जी ने राम भगवान का जन्म दुष्टों के संहार कर धर्म की स्थापना करने हेतु हुवा है। प्रसंग व्याख्यान करते हुए बताया कि भगवान राम के जन्म का उद्देश्य संसार में धर्म की स्थापना करने के साथ-साथ अधर्म का नाश करना था। साथ ही साथ अपने भक्तों को मनोरथ को भी पूर्ण करना था। देवर्षि नारद ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि आपको मनुष्य योनि में जन्म लेने के बाद भक्तों की रक्षा करनी होगी। तब अयोध्या के राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ किया। इसके बाद ही भगवान राम का जन्म हुआ। वही जय और विजय जो भगवान के पार्षद थे श्रापवश मनुष्य योनि में जन्म लेकर रावण और कुंभकर्ण बनते हैं। रावण, कुंभकरण और विभीषण तपस्या में लीन रहते हैं। ये सभी ब्रह्मा जी से वरदान पाकर बलवान हो जाते हैं। शक्ति मिलने के कारण रावण, कुंभकरण का आतंक चारों ओर फैलता है, जिससे मनुष्य से लेकर जीव-जंतु और देवता भी घबरा जाते हैं। संत समाज को घोर यातना देने के साथ ही रावण देवताओं को बंदी बना लेता है। सभी देवता अपनी सुरक्षा को लेकर भगवान विष्णु के पास आते हैं। पृथ्वी पर अधर्म को बढ़ता देख भगवान विष्णु राम का अवतार धारण कर पृथ्वी पर अवतरित होते हैं। अयोध्या नरेश राजा दशरथ के घर पुत्रों का जन्म पर खुशी का माहौल दिखता है। कुछ समय बाद चारों राजकुमारों की शिक्षा गुरुकुल में होती है। थोड़े समय बाद गुरु वशिष्ठ ताड़का वध के लिए राम को लेने अयोध्या नरेश के यहां आते हैं। गुरु की बात सुन राजा दशरथ पुत्र मोह में पड़ते हैं, लेकिन वो गुरु को समझाने के बाद राजहित के लिए अपने पुत्र राम और लक्ष्मण को गुरु के साथ भेज देते हैं। गुरु की आज्ञा से भगवान राम ताड़का का वध करते हैं। ताड़का के आतंक से ऋषि-मुनियों को भय मुक्त बनाने के साथ धर्म की स्थापना करते हैं। चारों ओर भगवान राम का जय-जयकार होती है। श्रीराम कथा के तीसरे दिन कथावाचीका पूज्य किशोरी वेदांगनी पाण्डेय ने शिव-पार्वती विवाह का प्रसंग भी सुनाया। प्रसंग सुन श्रद्धालु भावविभोर हो गए।पूज्य किशोरी जी ने कहा कि जब सती मरने लगी तो राम जी से वरदान मांगी कि जब भी धरती पर जन्म लूं तो शिव के पत्नी के रूप में ही जन्म लूं। राम ने वरदान दिया और राम जी के वरदान के कारण ही सती का जन्म पर्वतराज हिमालय के घर में हुआ और देवर्षि के कहने पर मां पार्वती जब घोर कठिन तपस्या करती है। जिसके बाद राम जी की कृपा से आकाशवाणी होती है कि आपको त्रिपुरारी पति के रूप में मिलेंगे।उन्होंने कहा कि तप के करने से ही लक्ष्य की प्राप्ति होती है। जब लक्ष्य बड़ा हो तो पुरुषार्थ की परिधि बढ़ जाती है। इसके बाद जब माता पार्वती बड़ी हो जाती है, तो पर्वतराज को उनकी शादी की चिंता सताने लगी तो एक दिन पर्वतराज के घर देवर्षि नारद पधारे और उन्होंने भगवान भोलेनाथ के साथ पार्वती के विवाह का संयोग बताया। इसके बाद विवाह तय हुआ और बारात लेकर शिवजी पार्वती के यहां गए। नंदी पर सवार भोलेनाथ जब भूत-पिशाचों के साथ बारात लेकर पहुंचे तो उसे देखकर पर्वतराज और उनके परिजन अचंभित हो गए, लेकिन माता पार्वती ने खुशी से भोलेनाथ को पति के रूप में स्वीकार कर लिया। इस कथा के दौरान मुख़्य यजमान के रूप में किशन बंजारा, नरेन्द्र बंजारा सधर्मपत्नी,राम भक्त महिलाएं पुरुष भक्तगण गणमान्य नागरिक नगरवासी सैकड़ो की संख्या में उपस्थित होकर श्रीरामकथा श्रवण कर रहे है। वही आचार्य बलराम ब्रजवासी जी महाराज ने बताया कि प्रतिदिन रामकथा की आरती के बाद अखण्ड भण्डारे का आयोजन भी नगरवासियों के सहयोग से किया जा रहा है जिसमे प्रतिदिन हजारों भक्त प्रसादग्रहण कर रहें है।
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