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Jashpur

*धर्म:- राज परिवार के साथ ऐतिहासिक दिव्य अस्त्र, शस्त्र लेकर निकले ब्राम्हण, आचार्य, शस्त्र पूजा के साथ गौरवशाली सांस्कृतिक परंपरा हुई जीवंत और जशपुर नवरात्र का हुआ शुभारंभ, यहां की नवरात्रि साधकों के लिए होती है खास जब वैदिक, तांत्रिक विधि से होता है अनुष्ठान, कामना जनता के कल्याण के लिए कि क्षेत्र में महामारी नहीं फैले, दुर्भिक्ष न हो……*

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जशपुरनगर। विश्वबंधु शर्मा। ऐतिहासिक व सांस्कृतिक रूप से नवरात्र में विशिष्ट परंपरा के लिए पहचान स्थापित नवरात्र के पहले दिन जिला मुख्यालय सहित पूरे जिले में जगत जननी मां दुर्गा की पूजा एंव आराधना के लिए मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी। नगर के बीएस मार्केट में स्थित रियासतकालिन काली मंदिर में राजपुरोहितों की अगुवाई में विधि विधान से पूजा के साथ जशपुर के ऐतिहासिक दशहरा उत्सव की शुरूआत भी हुई। नवरात्रि के पहले दिन जगह-जगह कलश यात्रा निकाल कर भक्तों ने कलश की स्थापना की।
नगर के मां काली मंदिर, गम्हरिया और सोगड़ा में स्थित ब्रहम निष्ठालय के साथ जिले के सभी देवी मंदिरों में सुबह से ही श्रद्धालु माता की अराधना के लिए पहुंच रहे। सभी मंदिरों में भक्तों की लंबी कतार और भीड़ लगी रही। इसके अलावा कई श्रद्धालुओं ने अपने-अपने घरों में भी कलश स्थापना कर नवरात्रि व्रत प्रारंभ किया। पूरे 9 दिनों तक लोग माता की भक्ति में लीन रहेंगे। रियासतकालीन परंपरा के अनुसार मां काली मंदिर में तांत्रिक विधि से मां की अराधना शुरू हुई। जशपुर में नवरात्रि प्रारंभ होते ही ऐतिहासिक दशहरा उत्सव भी शुरू हो जाता है। 10 दिनों तक चलने वाले दशहरा उत्सव की शुरुआत गुरुवार को पक्की डाड़ी में शस्त्र पूजन के साथ हुई। राज परिवार के यशप्रताप सिंह जूदेव एंव विजय आदित्य प्रताप सिंह जूदेव सहित काली मंदिर एवं बालाजी मंदिर के आचार्य और मिरधा मंदिर से तलवार और अन्य अस्त्र-शस्त्र ले कर पक्की डाड़ी पहुंचे। वहां आचार्यों, ब्राम्हणों ने स्नानकर नए वस्त्रों का धारण किया। इसके बाद पक्की डाड़ी में बनी वेदी पर कलश स्थापना की गई और विधि-विधान से शस्त्रों की पूजा-अर्चना कर आरती की गई। यहां से सभी लोग शस्त्र लेकर देवी मंदिर पहुंचे और वहां पूजा-अर्चना की गई। रियासतकाल से मां काली का विधि विधान से पूजा-अर्चना करने की परंपरा चली आ रही है। जिसे आज तक राजपरिवार के नेतृत्व में निभाया जा रहा है। इस बार शस्त्र पूजा में विशेष रूप से राज परिवार के यशप्रताप सिंह जूदेव एंव विजय आदित्य प्रताप सिंह जूदेव शामिल हुए। इसके अलावा बालाजी मंदिर में भी दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ लगी रही। दोनों मंदिरों में दुर्गा सप्तशती और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ भी प्रारंभ किया गया। 9 दिनों तक दिन में बालाजी मंदिर और रात में मां काली मंदिर में हवन किया जाएगा। नवरात्रि के पहले दिन जगत जननी मां अंबे के शैलपुत्री के रूप की अराधना की गई।

9 दिन तक होगा निर्वाण जाप, रक्षा कवच का पाठ

रियासतकाल में शस्त्रों का अहम स्थान होता था। नवरात्रि में राज परिवार द्वारा वैदिक एवं तांत्रिक विधि के साथ पूजा-अर्चना विधि-विधान के साथ की जाती है। यह परंपरा आज भी कायम है। इस संबंध में आचार्य पं. विनोद मिश्र एंव प. मनोज रमाकांत मिश्र ने बताया कि पक्की डाड़ी से लाकर शस्त्रों की स्थापना मंदिरों में की गई है। इसके बाद ब्राह्मणों का समूह 9 दिन तक दुर्गा सप्तशती पाठ, निर्वाण जाप, रक्षा कवच आदि का पाठ किया जाएगा। उसके बाद रोजाना सुबह-शाम विधि-विधान से तांत्रिक एवं वैदिक विधि से मां काली का पूजन-हवन किया जाएगा। मां काली मंदिर में तांत्रिक विधि से और बालाजी मंदिर में वैदिक रीति से अनुष्ठान किया जाता है। इसके पीछे मान्यता के बारे में आचार्य पं. मनोज रमाकांत मिश्र ने बताया कि जशपुर राजपरिवार द्वारा जनता के कल्याण के लिए, क्षेत्र में महामारी नहीं फैलने के लिए, दुर्भिक्ष न हो, किसी प्रकार की प्राकृतिक आपदा न आए और जिले में अच्छी फसल हो, इसकी कामना कर इस मंदिर में माता की अराधना की जाती है। इससे वर्ष भर जिले में किसी प्रकार का अनिष्ट नहीं होता है।

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